हिंदू धर्म में साल भर में कुल 12 संक्रांतियां मनाई जाती हैं और हर एक का अपना खास महत्व होता है। इन संक्रांतियों में कन्या संक्रांति एक विशेष स्थान रखती है। इस दिन सूर्य देव अपनी स्वराशि सिंह को छोड़कर कन्या राशि में प्रवेश करते हैं। ज्योतिषीय नजरिए से भी यह परिवर्तन खास माना जाता है, क्योंकि सूर्य का यह गोचर विश्लेषण, बुद्धिमत्ता और व्यवहारिकता जैसे गुणों को बढ़ावा देता है।
कब है कन्या संक्रांति 2025 में
हिंदू पंचांग के मुताबिक, साल 2025 में कन्या संक्रांति 17 सितंबर को पड़ रही है। इस दिन सूर्य देव दोपहर में सिंह राशि से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करेंगे। इसके साथ ही इस दिन का धार्मिक दृष्टिकोण से महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि यही वह समय होता है जब पितृ पक्ष की शुरुआत मानी जाती है।
पूजा-पाठ के लिए शुभ समय
पंचांग के अनुसार, कन्या संक्रांति का पुण्यकाल 17 सितंबर को दोपहर 1 बजकर 46 मिनट से शुरू होकर शाम 6 बजकर 19 मिनट तक रहेगा। यह करीब 4 घंटे 33 मिनट का समय अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इस दौरान दान, स्नान और पूजा-पाठ का विशेष महत्व बताया गया है।
इसके अलावा महापुण्य काल दोपहर 1 बजकर 46 मिनट से लेकर 3 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। यह अवधि धार्मिक अनुष्ठानों, सूर्य पूजन और दान करने के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।
क्या करें इस दिन
- सूर्य को अर्घ्य देना: कन्या संक्रांति के दिन सुबह से ही लोग सूर्य को जल अर्पित करते हैं। इस दौरान 'ॐ घृणि सूर्याय नमः' मंत्र का जाप किया जाता है। माना जाता है कि इस मंत्र के साथ सूर्य को अर्घ्य देने से आत्मबल बढ़ता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
- दान का विशेष महत्व: यह दिन दान-पुण्य के लिए बेहद उपयुक्त माना जाता है। खासकर तिल, गुड़, चावल, वस्त्र और घी का दान शुभ फल देता है। कई जगहों पर लोग निर्धनों को भोजन भी कराते हैं।
- नदी स्नान: अगर संभव हो तो इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना बेहद लाभकारी माना जाता है। जो लोग नदी स्नान नहीं कर पाते, वे घर पर ही गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
- विश्वकर्मा पूजा का दिन: कन्या संक्रांति का एक और महत्वपूर्ण पक्ष है विश्वकर्मा पूजा। यह दिन खासकर कारीगरों, इंजीनियरों और मशीनरी से जुड़े लोगों के लिए अहम होता है। इस दिन कई कारखानों, वर्कशॉप और दफ्तरों में मशीनों की पूजा की जाती है और भगवान विश्वकर्मा का आह्वान किया जाता है।
पितृ पक्ष की शुरुआत का संकेत
कन्या संक्रांति के साथ ही पितृ पक्ष का शुभारंभ भी माना जाता है। हिंदू परंपराओं में यह समय पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विशेष होता है। इस काल में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्म किए जाते हैं। ऐसे में कन्या संक्रांति का दिन पितरों को याद करने और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर भी होता है।
सूर्य के राशि परिवर्तन का असर]
ज्योतिषियों के अनुसार, जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है, तब यह व्यक्ति की सोच, तर्क शक्ति और विश्लेषण क्षमता को प्रभावित करता है। कन्या राशि बुध ग्रह की राशि मानी जाती है, जो बुद्धि और संवाद का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे में सूर्य के इस गोचर का असर व्यापार, शिक्षा, संचार और विश्लेषण से जुड़े कार्यों पर साफ देखा जा सकता है।
धार्मिक आयोजनों का समय
कई राज्यों में इस दिन विशेष रूप से सूर्य मंदिरों में धार्मिक आयोजन होते हैं। लोग व्रत रखते हैं, मंदिरों में दीप जलाते हैं और अपने घरों में सूर्य की मूर्ति की पूजा करते हैं। विश्वकर्मा पूजा को लेकर भी उत्तर भारत, पूर्वी भारत और खासकर बंगाल, ओडिशा और झारखंड के इलाकों में विशेष तैयारियां होती हैं।
संस्कृति से जुड़ा उत्सव
कन्या संक्रांति न सिर्फ एक ज्योतिषीय घटना है, बल्कि भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा भी है। यह दिन सूर्य की उपासना के माध्यम से आत्मचिंतन, दान और पितृ भक्ति को समर्पित होता है। यह पर्व हर वर्ग के लिए किसी न किसी रूप में खास होता है, चाहे वह किसान हो, कारीगर हो या फिर एक साधारण गृहस्थ।