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मराठी भाषा विवाद पर JNU कुलपति का बयान आया सामने, कही ये अहम बात

मराठी भाषा विवाद पर JNU कुलपति का बयान आया सामने, कही ये अहम बात

महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी भाषा विवाद लगातार गहराता जा रहा है। इस मुद्दे पर अब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की कुलपति प्रोफेसर शांतिश्री धुलीपुडी पंडित का बयान सामने आया है। उन्होंने भाषा को लेकर चल रहे राजनीतिक और सामाजिक बहस पर संतुलित और सौहार्दपूर्ण दृष्टिकोण रखने की अपील की है। कुलपति पंडित ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे हमेशा मातृभाषा को प्राथमिकता देंगी और भाषा को श्रेष्ठता या घृणा का माध्यम नहीं, बल्कि संवाद का साधन माना जाना चाहिए।

मातृभाषा सबसे पहले

JNU कुलपति प्रो. शांतिश्री पंडित ने मराठी भाषा को लेकर हो रहे विवाद पर कहा, मैं हमेशा मातृभाषा को प्राथमिकता दूंगी क्योंकि वह हमारी असली पहचान है। इसके अलावा हर व्यक्ति को वहां की स्थानीय भाषा और अपनी करियर की भाषा जरूर सीखनी चाहिए, जहां वह रहता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की सभी भाषाएं समृद्ध हैं और बहुभाषिकता देश की असली ताकत है।

प्रोफेसर पंडित ने कहा कि भाषा को लेकर किसी पर कोई भी विचार या भाषा नहीं थोपी जानी चाहिए। भाषा घृणा या श्रेष्ठता का प्रतीक नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह संवाद और समावेश का माध्यम होनी चाहिए। हमें भारत की हर भाषा को अपनाना और सम्मान देना चाहिए। मैं सभी लोगों को भारतीय भाषाओं में मौजूद समृद्ध साहित्य को पढ़ने और समझने के लिए प्रेरित करती हूं।

JNU में मराठी भाषा को लेकर नया शैक्षणिक केंद्र प्रस्तावित

प्रो. शांतिश्री ने यह भी बताया कि महाराष्ट्र सरकार ने जेएनयू में मराठी भाषा, साहित्य और संस्कृति के लिए एक विशेष केंद्र स्थापित करने में रुचि दिखाई है। यह केंद्र प्रख्यात मराठी साहित्यकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता कुसुमाग्रज के नाम पर होगा। उन्होंने कहा कि मराठी को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला है और विश्वविद्यालय मराठी समेत कई भारतीय भाषाओं में एमए पाठ्यक्रम, शोध, प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम और अनुवाद परियोजनाओं पर काम कर रहा है।

उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और राज्य सरकार का धन्यवाद करते हुए कहा कि इस पहल से भारतीय भाषाओं को शिक्षा के मुख्यधारा में लाने में मदद मिलेगी।

क्या है मराठी भाषा विवाद?

महाराष्ट्र में पिछले कुछ महीनों से मराठी और हिंदी भाषा को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। खासतौर पर मुंबई और अन्य शहरी इलाकों में मराठी को प्राथमिक भाषा के तौर पर अपनाने और इसे अनिवार्य करने की मांग ने राजनीतिक तूल पकड़ लिया है। मराठी समर्थक दलों का कहना है कि राज्य की सांस्कृतिक पहचान को बचाए रखने के लिए मराठी को मजबूती से लागू किया जाना जरूरी है। वहीं, हिंदी भाषी समुदाय इसे भाषा थोपने की नीति मानता है।

मार्च 2025 में RSS के वरिष्ठ नेता सुरेश भैयाजी जोशी ने बयान दिया कि मुंबई में मराठी सीखना अनिवार्य नहीं होना चाहिए। इस बयान पर शिवसेना (UBT) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि यह मराठी अस्मिता पर सीधा हमला है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि मराठी महाराष्ट्र की आत्मा है और हर नागरिक को इसका सम्मान करना चाहिए।

अप्रैल 2025 में महाराष्ट्र सरकार ने पहली से पांचवीं कक्षा तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का निर्णय लिया। इस पर मराठी समर्थकों ने नाराजगी जताई और कहा कि यह हिंदी थोपने की कोशिश है। इसके बाद राज्यभर में विरोध प्रदर्शन हुए और मराठी अस्मिता की लड़ाई ने एक बार फिर जोर पकड़ा।

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