सिनेमा की दुनिया में जब कोई युवा फिल्ममेकर अपनी पहली या शुरुआती फिल्म लेकर आता है, तो उम्मीदें कम होती हैं, लेकिन हैरानी तब होती है जब वह सीमित साधनों में कुछ ऐसा कर जाए जो लंबे वक्त तक याद रहे। 'मर्डरबाद' ठीक ऐसी ही फिल्म है। इस फिल्म को डायरेक्ट किया है 25 साल के अर्नब चटर्जी ने, और उन्होंने दिखा दिया है कि एक अच्छी कहानी, थोड़ा थ्रिल और सस्पेंस मिल जाए तो फिल्म बड़े नामों की मोहताज नहीं होती।
जयपुर की पृष्ठभूमि में बुनी गई एक दिलचस्प मर्डर मिस्ट्री
'मर्डरबाद' की कहानी शुरू होती है पिंक सिटी यानी जयपुर से। यहां का टूरिस्ट गाइड जयेश, जो कि नकुल रोशन सहदेव ने निभाया है, आम-सी जिंदगी जी रहा है। लेकिन फिर उसकी मुलाकात होती है कनिका कपूर से, जो विदेश से आई एक टूरिस्ट है। दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती हैं और सब कुछ अच्छा चल रहा होता है, तभी कहानी में आता है एक जबरदस्त मोड़ – एक खौफनाक मर्डर।
मर्डर होते ही फिल्म की रफ्तार बदल जाती है। सवाल उठने लगते हैं आखिर मरा कौन, क्यों मारा गया, और सबसे बड़ा सवाल किसने मारा? इन सवालों का जवाब ढूंढ़ने के लिए दर्शक मजबूर हो जाते हैं कि वो आखिर तक फिल्म से नजर न हटाएं।
कहानी में है कई मोड़ और लगातार बदलता ट्रैक
फिल्म की खास बात यह है कि जैसे ही आप सोचते हैं कि अब आप सब समझ गए, वैसे ही कहानी में नया मोड़ आ जाता है। फिल्म शुरुआत में थोड़ा वक्त लेती है अपने ट्रैक पर आने में, लेकिन एक बार जब मर्डर हो जाता है, फिर फिल्म अपनी लय में आ जाती है।
फिल्म में जयपुर की खूबसूरत लोकेशन का शानदार इस्तेमाल किया गया है। संकरी गलियों, किलों और भीड़भाड़ वाले बाजारों के बीच मर्डर मिस्ट्री और दिलचस्प हो जाती है।
कुछ सीन थोड़े खिंचे हुए लगते हैं और अगर उन्हें थोड़ा छोटा किया जाता, तो फिल्म और भी ज्यादा टाइट हो सकती थी। लेकिन फिर भी फिल्म दर्शकों को जो अनुभव देती है, वो काफी हटकर है।
अभिनय में नकुल और शारिब का कमाल
मुख्य किरदार जयेश के रूप में नकुल रोशन सहदेव ने बहुत ही अच्छा काम किया है। उनका चेहरा मासूमियत से भरा हुआ है और वही उनके किरदार की जरूरत भी थी। उनकी केमिस्ट्री कनिका कपूर के साथ अच्छी लगती है। कनिका ने भी स्क्रीन पर प्रभाव छोड़ा है और आने वाले समय में उनसे और अच्छे काम की उम्मीद की जा सकती है।
शारिब हाशमी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि क्यों वो हर रोल में जान डाल देते हैं। फिल्म में उनकी मौजूदगी कहानी को एक मजबूत आधार देती है। पुलिस अधिकारी के रोल में मनीषा चौधरी प्रभावशाली नजर आती हैं, वहीं सलोनी बत्रा ने भी अपनी भूमिका अच्छे से निभाई है।
अर्नब चटर्जी का निर्देशन सराहनीय
फिल्म को डायरेक्ट किया है अर्नब चटर्जी ने, जो महज 25 साल के हैं। इतनी कम उम्र में ऐसी मर्डर मिस्ट्री बनाना जो दर्शकों को आखिर तक बांधे रखे, आसान नहीं होता। लेकिन अर्नब ने ये कर दिखाया।
उनका डायरेक्शन कहानी को दिलचस्प बनाता है। उन्होंने ट्विस्ट और टर्न्स का इस्तेमाल बहुत सोच-समझकर किया है। हालांकि स्क्रीनप्ले में और कसावट हो सकती थी और कुछ सीन काटे जा सकते थे, लेकिन इससे यह इंकार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने एक हटके फिल्म बनाई है।
लो बजट, लेकिन इमोशन और थ्रिल से भरपूर
'मर्डरबाद' एक छोटी बजट की फिल्म है। इसमें ना बड़े स्टार हैं, ना भारी-भरकम सेटअप। लेकिन फिर भी फिल्म दर्शकों का ध्यान खींचने में कामयाब होती है।
फिल्म में जिस तरह से इमोशन, थ्रिल और सस्पेंस को बैलेंस किया गया है, वो काबिल-ए-तारीफ है। मर्डर मिस्ट्री की इस फिल्म में हर वो एलिमेंट मौजूद है जो दर्शकों को थिएटर तक खींच सकता है।
फिल्म की तकनीकी बातें और बैकग्राउंड स्कोर
फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक कहानी की टेंशन को और बढ़ा देता है। खासकर मर्डर के बाद जो सीन आते हैं, उनमें बैकग्राउंड स्कोर काफी दमदार है। एडिटिंग थोड़ी चुस्त होती तो फिल्म और असरदार बन सकती थी। सिनेमैटोग्राफी भी शानदार है, खासकर जयपुर के नजारे और रंगों को जिस तरह कैमरे में कैद किया गया है, वो खूबसूरती बढ़ा देता है।
'मर्डरबाद' क्यों देखनी चाहिए
अगर आप मर्डर मिस्ट्री और थ्रिलर फिल्मों के शौकीन हैं और हर बार एक नए ट्विस्ट का इंतजार करते हैं, तो 'मर्डरबाद' आपके लिए एक अच्छा ऑप्शन है। यह फिल्म आपको सस्पेंस के उस मोड़ पर ले जाती है, जहां आप खुद से सवाल पूछने लगते हैं।
फिल्म को थिएटर में देखने का अनुभव इसलिए भी खास रहेगा क्योंकि इसमें हर बार कुछ नया देखने को मिलता है, और एंड तक आप यही सोचते रहते हैं कि आखिर कातिल कौन है।
रेटिंग
3 स्टार
यह फिल्म बताती है कि जब कहानी में दम हो, तो न नाम बड़ा होना जरूरी है, न बजट। 'मर्डरबाद' अपनी सादगी और सस्पेंस से दर्शकों को चौंकाने में पूरी तरह कामयाब रहती है।