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रेयर अर्थ खनिज पर चीन का कब्ज़ा, भारत की बढ़ी टेंशन

रेयर अर्थ खनिज पर चीन का कब्ज़ा, भारत की बढ़ी टेंशन

चीन ने म्यांमार के कचिन क्षेत्र में रेयर अर्थ खनिजों की अवैध खुदाई के लिए विद्रोही संगठनों से समझौते कर लिए हैं। इससे चीन को खनिजों की स्थायी सप्लाई मिल रही है, जबकि भारत को इन संसाधनों तक पहुंचने में कठिनाइयां झेलनी पड़ रही हैं। चीन की इस चाल से स्थानीय लोग प्रदूषण और पर्यावरण संकट का सामना कर रहे हैं।

Rare Earth Mining: म्यांमार के कचिन क्षेत्र में रेयर अर्थ खनिजों पर चीन ने विद्रोही गुटों से गुप्त डील कर कब्जा मजबूत कर लिया है। इन खनिजों का उपयोग मोबाइल, बैटरी और हाई-टेक उपकरणों में होता है। चीन बड़े पैमाने पर खनन कर इन्हें भारत की सीमा के पास से ले जा रहा है। भारत ने शुरुआती स्तर पर KIA से सहयोग लेकर सैंपल इकट्ठा करने की कोशिश शुरू की है, लेकिन असली चुनौती चीन की पकड़ और स्थानीय अस्थिरता है। यह स्थिति भारत के लिए रणनीतिक चिंता और म्यांमार के लोगों के लिए पर्यावरणीय संकट पैदा कर रही है।

म्यांमार के विद्रोही गुटों से चीन का सौदा

मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि चीन ने म्यांमार के कचिन इलाके में सक्रिय विद्रोही संगठनों कचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (KIA) और कचिन इंडिपेंडेंस ऑर्गनाइजेशन (KIO) के साथ गुप्त समझौते किए हैं। इसके तहत चीन को खनन की छूट मिल गई है और बदले में वह विद्रोहियों को मोटी रकम टैक्स के तौर पर देता है। इस समझौते के जरिए चीन बड़े पैमाने पर खनिज निकाल रहा है और उन्हें सीधे अपनी फैक्ट्रियों तक पहुंचा रहा है।

चीन की पकड़ और मजबूत हुई

साल 2021 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद खनन का काम तेजी से बढ़ा। सिर्फ चार साल में लगभग 240 नई खदानें खोली गईं। इनमें से दो-तिहाई विद्रोही इलाकों में हैं और यही चीन के लिए सोने की खान साबित हो रहा है। अब तक चीन म्यांमार से 1,70,000 टन से ज्यादा रेयर अर्थ मिनरल्स ले चुका है।

कुछ वक्त पहले कचिन विद्रोहियों ने चीन को सप्लाई रोकने की कोशिश की थी, लेकिन ज्यादा दिन तक रोक नहीं पाई। चीन समर्थक गुटों ने जल्द ही खदानों पर दोबारा कब्जा कर लिया और सप्लाई बहाल हो गई।

भारत की बढ़ी मुश्किलें

भारत भी इन खनिजों के लिए म्यांमार की ओर देख रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत की माइनिंग मिनिस्ट्री ने सरकारी और निजी कंपनियों को म्यांमार के कचिन इलाके से खनिजों के सैंपल लेने का काम सौंपा है। इसमें सरकारी कंपनी IREL और प्राइवेट कंपनी मिडवेस्ट एडवांस्ड मटीरियल्स का नाम शामिल है।

लेकिन भारत के लिए यह रास्ता आसान नहीं है। जिन खदानों से खनिज निकाले जा रहे हैं वे घने जंगलों और चीन की सीमा के बेहद करीब हैं। चीन नहीं चाहेगा कि भारत को इन खनिजों की सप्लाई मिले। यही वजह है कि भारत अभी शुरुआती स्तर पर ही काम कर पा रहा है।

स्थानीय लोगों पर संकट

म्यांमार में हो रहे इस खनन का सबसे बुरा असर वहां के स्थानीय लोगों पर पड़ रहा है। खनन के दौरान जहरीले केमिकल्स नदियों और जमीन में घुल रहे हैं। खेती-बाड़ी बर्बाद हो रही है और पीने का साफ पानी तक नहीं बचा है। ग्लोबल विटनेस की रिपोर्ट के मुताबिक म्यांमार के गरीब और आदिवासी समुदाय चीन की चाल से बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। जिन खनिजों से दुनिया हरित ऊर्जा की ओर बढ़ रही है, उसकी असली कीमत ये लोग चुका रहे हैं।

चीन की दोहरी चाल

म्यांमार की मौजूदा हालत में चीन का खेल साफ नजर आता है। एक तरफ वह वहां की सरकार से जुड़ा हुआ है और दूसरी तरफ विद्रोही गुटों से भी सौदा कर चुका है। यानी चीन ने दोनों तरफ से अपना फायदा सुनिश्चित कर लिया है। भारत के लिए यह स्थिति और मुश्किल हो सकती है क्योंकि चीन न केवल खनिजों पर पकड़ बनाए हुए है बल्कि म्यांमार में राजनीतिक हालात को भी अपने पक्ष में मोड़ रहा है।

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