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सावन में सुहागिनों के श्रृंगार से जुड़ी 5 परंपराएं, जिनसे मिलता है अखंड सौभाग्य का वरदान

सावन में सुहागिनों के श्रृंगार से जुड़ी 5 परंपराएं, जिनसे मिलता है अखंड सौभाग्य का वरदान

सावन का महीना जहां शिव भक्ति और व्रत उपवास का समय होता है, वहीं यह समय सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष श्रृंगार और सौंदर्य साधना का भी होता है। यह श्रृंगार केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि उसमें छिपे हैं सौभाग्य, प्रेम और दांपत्य जीवन की रक्षा से जुड़े गहरे प्रतीक। हर साल की तरह 2025 का सावन भी महिलाओं के लिए उन परंपराओं को निभाने का अवसर लेकर आया है, जिनसे वे मां पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

श्रृंगार की शुरुआत होती है हरे रंग की साड़ी से

सावन में हरे रंग की साड़ी पहनना सिर्फ फैशन नहीं, एक धार्मिक परंपरा भी है। माना जाता है कि हरा रंग समृद्धि, जीवन और प्रेम का प्रतीक होता है। जब कोई महिला सावन के सोमवार व्रत के दिन हरे रंग की साड़ी पहनती है, तो वह न केवल शिव-पार्वती की कृपा की अधिकारी बनती है, बल्कि उसे अपने दांपत्य जीवन में स्थिरता और आनंद का अनुभव भी होता है। यही कारण है कि शिवालयों में दर्शन के लिए आने वाली महिलाएं प्राय: हरे परिधान में दिखाई देती हैं।

मेंहदी की रचाई में छुपा है सुहाग का संदेश

हाथों में मेंहदी सजाना हर महिला के लिए श्रृंगार का अहम हिस्सा होता है, लेकिन सावन में इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। कहा जाता है कि मेंहदी का रंग जितना गहरा होता है, पति का प्रेम उतना ही प्रबल होता है। सावन में महिलाएं व्रत रखने से पहले मेंहदी लगाती हैं और मां पार्वती को भी मेंहदी अर्पित करती हैं। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की महिलाएं इसे बड़े विश्वास से निभाती हैं।

हरा झूमका और लाल पैरों से निखरती है सावन की छवि

श्रृंगार में झुमका एक खास स्थान रखता है, और जब वह हरे रंग का हो, तो सावन की पवित्रता और भी बढ़ जाती है। माना जाता है कि हरे झूमके पहनने से सौंदर्य में चार चांद लगते हैं और साथ ही मां गौरी प्रसन्न होती हैं। इसी के साथ पैरों में लाल रंग (आलता या महावर) लगाना भी शुभता का संकेत होता है। यह परंपरा सिर्फ एक सजावटी क्रिया नहीं, बल्कि स्त्री की पवित्रता और गृहस्थ जीवन की गरिमा को दर्शाता है।

हरे रंग की बिंदी से शिव को मिलता है संकेत

बिंदी सिर्फ सौंदर्य का हिस्सा नहीं, बल्कि मस्तक के मध्य में स्थित आज्ञा चक्र को सजाने का माध्यम भी है। जब महिलाएं सावन में हरे रंग की बिंदी लगाती हैं, तो वह एक प्रतीक बन जाता है उस शुभ ऊर्जा का, जो उनके भीतर प्रस्फुटित होती है। हरा रंग शांति, सौभाग्य और नारीत्व का प्रतिनिधित्व करता है। शिव को यह संकेत मिलता है कि यह नारी अपने गृहस्थ जीवन को संजोए रखने के लिए पूरी तरह समर्पित है।

हरे रंग की चूड़ियां और पार्वती को अर्पण

हरे रंग की चूड़ियां विवाहित महिलाओं के लिए सावन में सबसे जरूरी श्रृंगार मानी जाती हैं। कहा जाता है कि यह चूड़ियां मां पार्वती की प्रिय हैं। महिलाएं न केवल इन्हें स्वयं पहनती हैं, बल्कि पार्वती को भी अर्पित करती हैं। इसका एक गहरा अर्थ है अपनी नारी सशक्तता और सौंदर्य को देवी को समर्पित करना। इस परंपरा में एक आत्मिक संवाद होता है देवी और स्त्री के बीच।

श्रृंगार के पीछे की आस्था और मन की बात

सावन के श्रृंगार के पीछे की भावना यह नहीं कि कोई महिला केवल सुंदर दिखे, बल्कि यह कि वह अपने प्रेम, समर्पण और आस्था को व्यक्त कर सके। हर श्रृंगार की चीज  साड़ी, बिंदी, चूड़ियां, मेंहदी और झुमके  सिर्फ आभूषण नहीं, एक संदेश है, एक संकल्प है कि वह अपने परिवार और गृहस्थ जीवन को संवारने के लिए समर्पित है।

सावन 2025 में उमड़ रहा है श्रृंगार का उत्साह

इस बार सावन 2025 में देशभर की महिलाएं फिर से परंपराओं के इन रंगों में रंगती नजर आ रही हैं। सोशल मीडिया से लेकर मंदिरों तक, हर जगह महिलाएं पारंपरिक परिधान और श्रृंगार में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा में रत हैं। नारी शक्ति, आस्था और परंपरा का यह सुंदर मिलन सावन के महीने को विशेष बनाता है।

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