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सरकार का ऐतिहासिक फैसला, बदलेगा GDP का आधार वर्ष

भारत सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर तरीके से मापने के लिए एक अहम निर्णय लिया है। अब सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP की गणना के लिए आधार वर्ष को 2011-12 से बदलकर 2022-23 कर दिया जाएगा। इस बदलाव का उद्देश्य है  देश की बदलती आर्थिक संरचना को वास्तविक रूप में दर्शाना और नीतिगत फैसलों के लिए अधिक सटीक डेटा उपलब्ध कराना।

यह फैसला अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है और इससे भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंच पर अधिक पारदर्शिता और भरोसेमंदता हासिल होगी। सरकार का मानना है कि नया आधार वर्ष मौजूदा आर्थिक गतिविधियों और महंगाई के प्रभाव को बेहतर तरीके से दर्शाएगा।

क्यों होता है आधार वर्ष में बदलाव

GDP की गणना के दौरान आधार वर्ष वह वर्ष होता है जिसे स्थिर कीमतों के मानक के तौर पर उपयोग किया जाता है। इसका मकसद होता है महंगाई या मुद्रास्फीति के प्रभाव को हटाकर वास्तविक आर्थिक विकास की गणना करना। यानी यदि आज की तुलना में दस साल पहले किसी वस्तु का मूल्य 100 रुपये था और आज 150 रुपये है, तो मूल्य बढ़ने का कारण महंगाई है या उत्पादन में वृद्धि  इसे समझने के लिए वास्तविक GDP जरूरी होता है।

2011-12 के आधार वर्ष को 2015 में लागू किया गया था, और अब लगभग 13 वर्षों बाद अर्थव्यवस्था में काफी बदलाव आ चुके हैं  जैसे डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इकोसिस्टम, जीएसटी व्यवस्था, कोविड-19 के बाद की रिकवरी आदि। ऐसे में नया आधार वर्ष आवश्यक हो गया है।

नई समिति करेगी बदलाव की निगरानी

सरकार ने GDP के इस बदलाव की प्रक्रिया को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी सलाहकार समिति (ACNAS) का गठन किया है। यह समिति 26 सदस्यों वाली होगी, जिसकी अध्यक्षता प्रोफेसर बिस्वनाथ गोल्डर करेंगे।

इस समिति में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों और प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। समिति का काम होगा  नए डेटा स्रोतों की पहचान करना, बेहतर गणना तकनीकों की सिफारिश देना, और सांख्यिकी मानकों को अपग्रेड करना। यह पूरा काम सरकार वर्ष 2026 की शुरुआत तक पूरा करना चाहती है।

आधार वर्ष में बदलाव क्यों जरूरी हो जाता है

आधार वर्ष को समय-समय पर बदलना जरूरी होता है क्योंकि आर्थिक संरचना में बदलाव आते हैं। जैसे  उपभोग पैटर्न, उत्पादन तकनीक, नए उत्पाद, सेवा क्षेत्र में विस्तार आदि। पुराने आंकड़े नई अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से प्रतिबिंबित नहीं कर पाते।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सलाह दी जाती है कि प्रत्येक 5 से 10 वर्षों में GDP के आधार वर्ष में बदलाव किया जाए ताकि आर्थिक संकेतक सटीक और समकालीन बने रहें।

विशेषज्ञों का मानना है कि पुराने आधार वर्ष के डेटा से आज की डिजिटल और सेवा-प्रधान अर्थव्यवस्था की सही तस्वीर नहीं मिल रही थी। इसलिए यह बदलाव जरूरी हो गया था।

नए आंकड़ों से नीतियों को मिलेगा बल

हाल ही में भारत की GDP ग्रोथ दर 2024 की जुलाई-सितंबर तिमाही में घटकर 5.4% रह गई है, जो पिछले सात तिमाहियों में सबसे कम है। ऐसे में यदि आंकड़े पुराने आधार वर्ष पर आधारित हों, तो नीति निर्माण में गलतफहमियां पैदा हो सकती हैं।

2022-23 को आधार वर्ष बनाना न सिर्फ आंकड़ों की गुणवत्ता में सुधार लाएगा, बल्कि इससे नीतिगत योजनाएं जैसे बजट निर्माण, निवेश नीति, रोजगार योजनाएं और सरकारी योजनाओं की प्लानिंग अधिक सटीक होगी।

क्या होता है नॉमिनल और वास्तविक GDP

GDP की दो मुख्य श्रेणियां होती हैं

  • नॉमिनल GDP: यह GDP मौजूदा बाजार मूल्य पर होती है। यानी इसमें मुद्रास्फीति शामिल रहती है। अगर महंगाई बढ़ेगी तो नॉमिनल GDP भी बढ़ेगी  भले ही उत्पादन ना बढ़े।
  • वास्तविक GDP: यह GDP आधार वर्ष की कीमतों पर आधारित होती है। इसमें महंगाई के प्रभाव को हटा दिया जाता है। इसलिए यह सच्ची आर्थिक वृद्धि को दिखाती है।

नया आधार वर्ष तय होने के बाद वास्तविक GDP की गणना 2022-23 के मूल्य स्तर पर होगी, जिससे तुलना और विश्लेषण अधिक भरोसेमंद होगा।

वैश्विक रैंकिंग और निवेश के लिहाज से फायदेमंद

GDP डेटा का उपयोग अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां, निवेशक और रेटिंग एजेंसियां भी करती हैं। यदि डेटा पुराने और अप्रासंगिक हों, तो भारत की रेटिंग या वैश्विक निवेश का आकलन गलत हो सकता है। ऐसे में इस बदलाव से भारत की Ease of Doing Business और निवेश के आकर्षण में सुधार आने की उम्मीद है।

इसके साथ ही यह कदम भारत की सांख्यिकीय प्रणाली को अधिक आधुनिक, पारदर्शी और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाएगा।

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