महिलाओं के शरीर में उम्र बढ़ने के साथ कई प्रकार के शारीरिक परिवर्तन होते हैं, जिनमें से कुछ सामान्य लग सकते हैं, लेकिन वे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं की ओर संकेत करते हैं। इन्हीं में से एक है यूट्राइन प्रोलैप्स (Uterine Prolapse), जिसे आम बोलचाल में 'बच्चेदानी का खिसकना' कहा जाता है। अगर छींकने, खांसने या हँसने के समय यूरिन का रिसाव होता है, तो यह केवल पेशाब न रोक पाने की समस्या नहीं, बल्कि यूट्राइन प्रोलैप्स की शुरुआत का संकेत हो सकता है।
यूट्राइन प्रोलैप्स क्या है?
यूट्राइन प्रोलैप्स एक ऐसी अवस्था है जिसमें गर्भाशय (Uterus) अपनी सामान्य स्थिति से नीचे की ओर खिसकने लगता है और कभी-कभी योनि से बाहर भी आ सकता है। यह समस्या तब होती है जब यूट्रस को सहारा देने वाली मांसपेशियाँ (pelvic floor muscles) और लिगामेंट कमज़ोर या ढीले पड़ जाते हैं। यह विशेष रूप से उन महिलाओं में देखने को मिलती है जो मेनोपॉज़ में प्रवेश कर चुकी होती हैं या जिनकी एक से अधिक सामान्य प्रसव (Normal delivery) हो चुके हैं।
छींकने पर पेशाब निकलना: सतही नहीं, गंभीर संकेत
छींकने या हँसने पर पेशाब निकल जाना एक प्रकार की 'स्ट्रेस यूरिनरी इन्कॉन्टिनेंस' (Stress Urinary Incontinence) है, जो पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों के कमजोर होने का परिणाम हो सकता है। जब मांसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं, तो वे ना केवल यूट्रस को सहारा देने में विफल रहती हैं बल्कि मूत्राशय पर भी नियंत्रण खो देती हैं। इस कारण मामूली दबाव पड़ने पर पेशाब का रिसाव होने लगता है। यह लक्षण अक्सर यूट्राइन प्रोलैप्स की ओर पहला इशारा होता है।
यूट्राइन प्रोलैप्स की अवस्थाएँ (Stages of Prolapse)
- स्टेज 1: यूट्रस हल्के रूप से योनि की ओर खिसकता है।
- स्टेज 2: यूट्रस योनि के अंदर तक पहुँच जाता है।
- स्टेज 3: गर्भाशय का कुछ भाग योनि से बाहर दिखाई देने लगता है।
- स्टेज 4: संपूर्ण गर्भाशय योनि से बाहर आ जाता है, जिसे मेडिकल आपातकाल माना जाता है।
प्रमुख लक्षण जिन पर ध्यान देना जरूरी है
- निचले पेट या योनि में खिंचाव या भारीपन महसूस होना।
- लंबे समय तक खड़े रहने या चलने पर असहजता।
- कमर दर्द या श्रोणि क्षेत्र में दर्द।
- वजाइना से मांस का टुकड़ा बाहर दिखना।
- शारीरिक संबंध बनाते समय दर्द होना।
- बार-बार पेशाब लगना या पेशाब रोक पाने में कठिनाई।
- कब्ज की समस्या या मल त्याग में कठिनाई।
किन महिलाओं को होता है अधिक खतरा?
- जिनकी कई बार नॉर्मल डिलीवरी हो चुकी हो।
- मेनोपॉज की अवस्था में प्रवेश कर चुकी महिलाएं।
- जिनका वजन अधिक हो या मोटापा हो।
- जिनकी पेल्विक सर्जरी हो चुकी हो।
- परिवार में पहले से यह समस्या रही हो।
- जो भारी वजन बार-बार उठाती हों या जिन्हें पुरानी खांसी की समस्या हो।
मुख्य कारण जो इस स्थिति को बढ़ावा देते हैं
- एस्ट्रोजन की कमी: मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन की मात्रा कम हो जाती है जिससे मांसपेशियाँ ढीली पड़ने लगती हैं।
- गर्भावस्था और प्रसव: विशेष रूप से जब डिलीवरी में उपकरणों का उपयोग हुआ हो या बच्चा बड़ा हो।
- अत्यधिक वजन: पेट पर बढ़ा दबाव मांसपेशियों को प्रभावित करता है।
- बार-बार खांसी या कब्ज: श्रोणि मांसपेशियों पर लगातार दबाव पड़ने से कमजोरी आ सकती है।
समस्या को कैसे रोका जाए?
- केगेल एक्सरसाइज: यह पेल्विक फ्लोर मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए बहुत प्रभावी है।
- वजन नियंत्रित रखें: मोटापा कम करने से पेट के निचले हिस्से पर दबाव घटता है।
- कब्ज और खांसी से बचें: फाइबर युक्त आहार लें और पुरानी खांसी का इलाज कराएँ।
- भारी वजन उठाने से बचें: खासकर अगर पहले से कोई पेल्विक कमजोरी है।
- सही मुद्रा में बैठें और उठें: शारीरिक क्रियाओं को सही तरीके से करना भी जरूरी है।
इलाज की संभावनाएं क्या हैं?
यदि यूट्राइन प्रोलैप्स की पुष्टि होती है, तो इसके इलाज के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं:
- फिजियोथेरेपी और व्यायाम – शुरुआती चरणों में कारगर।
- Pessary उपकरण – योनि में डालने वाला उपकरण जो यूट्रस को सहारा देता है।
- हार्मोनल थैरेपी – खासकर मेनोपॉज़ के बाद की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए।
- सर्जरी – गंभीर मामलों में गर्भाशय को स्थिर करने या निकालने के लिए।
अक्सर महिलाएं छींकने या हँसने पर पेशाब के रिसाव जैसे लक्षणों को सामान्य मान लेती हैं और उन्हें नजरअंदाज कर देती हैं। लेकिन यह यूट्राइन प्रोलैप्स जैसी गंभीर स्थिति की चेतावनी हो सकती है। इसीलिए समय रहते उचित जाँच और इलाज आवश्यक है। ध्यान रखें – शरीर के संकेतों को समझना और समय पर प्रतिक्रिया देना ही अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है।