हिंदू पंचांग में प्रदोष व्रत को बहुत ही शुभ और फलदायी माना गया है। इस व्रत को रखने से शिव जी की विशेष कृपा मिलती है और जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति का मार्ग खुलता है। यह उपवास हर महीने में दो बार आता है एक शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में। यह व्रत त्रयोदशी तिथि को किया जाता है, जो भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होती है।
प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत का विशेष महत्व यह है कि इसे शिव जी की आराधना के लिए सबसे उत्तम समय माना गया है। मान्यता है कि त्रयोदशी तिथि की संध्या को शिव जी अपने भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं। इस दिन पूजा-अर्चना से न केवल शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर होते हैं, बल्कि जीवन में सुख-शांति और समृद्धि भी आती है। खासकर सावन माह में इस व्रत का महत्व कई गुना बढ़ जाता है, क्योंकि यह महीना खुद शिव जी को अत्यंत प्रिय है।
सावन का अंतिम प्रदोष व्रत: 6 अगस्त 2025
अगस्त माह की शुरुआत सावन मास से होगी और इसी महीने सावन का अंतिम प्रदोष व्रत रखा जाएगा। सावन शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 6 अगस्त को पड़ रही है। इस तिथि की शुरुआत दोपहर 2 बजकर 8 मिनट पर होगी और समाप्ति 7 अगस्त को दोपहर 2 बजकर 27 मिनट पर होगी। ऐसे में प्रदोष व्रत 6 अगस्त को रखा जाएगा।
पूजा का शुभ समय
इस दिन प्रदोष काल में पूजा करना विशेष फलदायी माना गया है। 6 अगस्त को पूजा का सबसे अच्छा समय शाम 7 बजकर 8 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। इस दौरान शिव जी की आराधना, रुद्राभिषेक, बेलपत्र अर्पण, धूप-दीप और मंत्रों का जाप करने से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
अगस्त माह का दूसरा प्रदोष व्रत: 20 अगस्त 2025
अगस्त माह में दूसरा प्रदोष व्रत भाद्रपद कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आएगा। यह तिथि 20 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 58 मिनट पर शुरू होगी और 21 अगस्त को दोपहर 12 बजकर 44 मिनट तक चलेगी। व्रत रखने की तिथि 20 अगस्त रहेगी।
शुभ मुहूर्त और दिन का विशेष योग
इस दिन प्रदोष व्रत बुधवार को पड़ रहा है, इसलिए इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाएगा। इस दिन पूजा का शुभ समय शाम 6 बजकर 20 मिनट से रात 8 बजकर 33 मिनट तक रहेगा। चूंकि बुधवार का दिन बुद्धि और वाणी के देवता बुध को समर्पित होता है, इसलिए शिव पूजा के साथ-साथ वाणी और निर्णयों में स्थिरता की कामना भी की जाती है।
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
प्रदोष व्रत में पूजा विशेष नियमों से की जाती है। इस दिन व्रती को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और पूरे दिन उपवास रखना चाहिए। शाम के समय प्रदोष काल में शिवलिंग की पूजा की जाती है।
- पहले शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल से अभिषेक करें
- बेलपत्र, धतूरा, सफेद फूल और भस्म अर्पित करें
- शिव जी को सफेद वस्त्र चढ़ाएं और अगरबत्ती, दीपक लगाएं
- शिव मंत्रों का जाप करें, जैसे "ॐ नमः शिवाय" या महामृत्युंजय मंत्र
- माता पार्वती की पूजा भी साथ में करें
- आरती के बाद कथा सुनना भी शुभ माना जाता है
भक्तों की आस्था से जुड़ा पर्व
प्रदोष व्रत सिर्फ पूजा का एक दिन नहीं है, यह एक साधना है। भक्त इस दिन उपवास रखकर शरीर और मन को संयम में रखते हैं और शिव जी के चरणों में अपने कष्टों की निवेदन करते हैं। इस दिन कई स्थानों पर शिव मंदिरों में विशेष भजन-कीर्तन और रुद्राभिषेक का आयोजन होता है।
घर पर भी कर सकते हैं पूजा
अगर कोई मंदिर नहीं जा सकता, तो घर पर भी शिव जी की मूर्ति या चित्र के सामने विधिपूर्वक पूजा की जा सकती है। ध्यान और मंत्र जाप से शिव भक्ति को साकार किया जा सकता है। घर पर रुद्राष्टक, शिव चालीसा, शिव पुराण से जुड़ी कथाएं पढ़ना भी लाभकारी होता है।
सावन में शिव की विशेष कृपा
जैसा कि अगस्त का पहला प्रदोष व्रत सावन माह में पड़ रहा है, यह समय शिव भक्ति के लिए अत्यंत अनुकूल होता है। सावन के अंतिम प्रदोष व्रत को विशेष रूप से किया जाता है ताकि पूरे महीने की साधना पूर्णता को प्राप्त हो सके। कहा जाता है कि सावन में जो भी भक्त सच्चे मन से व्रत रखते हैं, उनकी मनोकामनाएं जल्दी पूरी होती हैं।