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H-1B विवाद के बाद अब झींगा एक्सपोर्ट पर टैरिफ का खतरा, भारत की विदेशी कमाई पर असर

H-1B विवाद के बाद अब झींगा एक्सपोर्ट पर टैरिफ का खतरा, भारत की विदेशी कमाई पर असर

अमेरिकी सांसदों ने भारत के झींगा एक्सपोर्ट पर टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखा है, जिससे भारत की सी-फूड इंडस्ट्री को नुकसान हो सकता है। साथ ही, H-1B वीजा की फीस 1,00,000 डॉलर तक बढ़ाई गई है। एक्सपर्ट्स के अनुसार ये दोनों कदम भारत के विदेशी व्यापार और 125 अरब डॉलर के रेमिटेंस पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं।

Tariffs on shrimp exports: अमेरिकी सांसद बिल कैसिडी और सिंडी हाइड-स्मिथ ने “इंडिया श्रिम्प टैरिफ एक्ट” पेश किया है, जिसमें भारत के झींगा एक्सपोर्ट पर टैरिफ लगाने की मांग की गई है। उनका आरोप है कि भारत अमेरिकी बाजार में सस्ते दामों पर झींगा बेचकर स्थानीय इंडस्ट्री को नुकसान पहुंचा रहा है। दूसरी ओर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 21 सितंबर 2025 से H-1B वीजा की फीस 1,00,000 डॉलर तक बढ़ा दी है। विशेषज्ञों के अनुसार, इन कदमों से भारत के विदेशी व्यापार और आईटी कंपनियों के रेमिटेंस पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

अमेरिकी सांसदों का प्रस्ताव

अमेरिकी रिपब्लिकन सीनेटर बिल कैसिडी और सिंडी हाइड-स्मिथ ने “इंडिया श्रिम्प टैरिफ एक्ट” को अमेरिकी कांग्रेस में पेश किया है। उनका आरोप है कि भारत गलत व्यापार तरीकों से अमेरिकी बाजार में झींगा बेच रहा है। इस वजह से लुइसियाना की झींगा और कैटफिश इंडस्ट्री को नुकसान हो रहा है। अमेरिकी सांसदों का कहना है कि भारतीय कंपनियां सस्ते दाम पर झींगा बेच रही हैं, जबकि स्थानीय उत्पादक सख्त नियमों का पालन करते हैं। इस बिल के लागू होने से अमेरिकी इंडस्ट्री और कस्टमर्स को लाभ मिलेगा और स्थानीय नौकरियां सुरक्षित रहेंगी।

सीनेटर हाइड-स्मिथ ने कहा कि भारतीय झींगा एक्सपोर्ट से अमेरिकी उद्योग और ग्राहकों को नुकसान पहुंच रहा है। इस बिल का उद्देश्य भारतीय एक्सपोर्ट पर बराबरी का मौका सुनिश्चित करना है। कैसिडी ने पहले भी सीनेट की वित्त समिति में इस मुद्दे को उठाया था और ट्रेजरी उम्मीदवार से स्थानीय झींगा उत्पादकों के लिए समर्थन का वादा लिया था। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि साल 2025 की शुरुआत में उन्होंने भारत और चीन से चावल आयात पर रोक का बिल पेश किया था।

H-1B वीजा पर बढ़ी फीस

वहीं दूसरी ओर, H-1B वीजा पर नियमों में बड़ा बदलाव किया गया है। नए आदेश 21 सितंबर 2025 से लागू हो गए हैं। नए नियमों के तहत H-1B वीजा के लिए 1,00,000 डॉलर यानी लगभग 88 लाख रुपये की भारी फीस देनी होगी। अमेरिकी सरकार का कहना है कि यह कदम वीजा दुरुपयोग रोकने के लिए उठाया गया है।

भारत के लिए इसका सबसे बड़ा असर आईटी सेक्टर पर पड़ेगा। टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो जैसी भारतीय कंपनियों को नई फीस और नियमों के कारण वित्तीय और प्रशासनिक बोझ उठाना होगा। आंकड़ों के अनुसार 71-72 प्रतिशत H-1B वीजा भारतीयों को मिलते हैं, इसलिए इसका सबसे बड़ा असर भारत पर ही होगा।

आर्थिक प्रभाव और विदेशी व्यापार

विशेषज्ञों का मानना है कि झींगा एक्सपोर्ट पर टैरिफ और H-1B वीजा की नई शर्तें भारत के लिए दोहरे नुकसान का कारण बन सकती हैं। झींगा पर टैरिफ से भारतीय सी फूड एक्सपोर्ट प्रभावित होगा। वहीं H-1B वीजा शुल्क में बढ़ोतरी से भारतीय आईटी कंपनियों के लिए अमेरिका में कर्मचारियों की तैनाती महंगी होगी। इसके परिणामस्वरूप भारत के 125 अरब डॉलर के रेमिटेंस में कमी आने की संभावना है।

भारत के व्यापारिक हित

भारत में झींगा और अन्य सी फूड का निर्यात कई राज्यों में रोजगार का बड़ा स्रोत है। इस पर टैरिफ लगने से किसानों और मछुआरों की आय प्रभावित हो सकती है। वहीं H-1B वीजा की नई फीस से भारतीय आईटी पेशेवरों को अमेरिका में काम करने में वित्तीय दबाव बढ़ेगा। इन दोनों कदमों का मिलकर भारत के विदेशी व्यापार और आर्थिक हितों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

वित्त और विदेश व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका की ओर से उठाए गए ये कदम भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हैं। H-1B वीजा और झींगा एक्सपोर्ट टैरिफ दोनों ही भारतीय अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण हिस्सों पर असर डाल सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इससे भारत को न केवल निर्यात और रेमिटेंस के नुकसान का सामना करना पड़ सकता है, बल्कि स्थानीय रोजगार और उद्योग भी प्रभावित होंगे।

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