श्रावण माह की अमावस्या तिथि को हरियाली अमावस्या कहा जाता है। यह दिन पितरों की शांति, तर्पण, दान और उनकी कृपा पाने के लिए विशेष माना गया है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि कुछ विशेष स्थानों पर दीप जलाने से पितृ प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
दक्षिण दिशा में दीप जलाना क्यों जरूरी है
वास्तु शास्त्र के अनुसार, दक्षिण दिशा को पितरों की दिशा कहा गया है। माना जाता है कि इसी दिशा में पितृलोक स्थित होता है। इसलिए हरियाली अमावस्या के दिन घर की दक्षिण दिशा में दीपक जलाना शुभ होता है।
इस दिशा में जलाया गया चौमुखी दीपक विशेष फलदायी माना गया है। एक मिट्टी का दीपक लेकर उसमें चार बाती रखें और चारों दिशाओं में उसे रखें। इसमें तिल का तेल भरकर जलाएं और पितरों का स्मरण करें। कहा जाता है कि इससे पितृ तृप्त होते हैं और उनके आशीर्वाद से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
ईशान कोण में दीप जलाने का महत्व
ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा को देवताओं की दिशा माना जाता है। इस दिशा में दीपक जलाने से न केवल पितृ देवता बल्कि देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त होती है। हरियाली अमावस्या पर ईशान कोण में दीपक जलाकर पवित्र भावना से प्रार्थना करने से वातावरण भी सकारात्मक होता है।
इस स्थान पर जलाया गया दीपक मन और घर दोनों को पवित्र करता है और माना जाता है कि इससे शुभ ऊर्जा का संचार होता है।
पीपल के पेड़ के नीचे दीप जलाना क्यों जरूरी है
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि पीपल का वृक्ष न केवल देवताओं बल्कि पितरों का भी वास स्थान माना गया है। खासकर अमावस्या के दिन पीपल की पूजा और इसके नीचे दीपक जलाना अत्यंत पुण्यकारी होता है।
हरियाली अमावस्या पर सुबह-सुबह पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाएं और सात बार उसकी परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय पितरों का स्मरण करें और मन में उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।
इससे पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है और उनके आशीर्वाद से जीवन की कठिनाइयों में राहत मिलती है।
शिव मंदिर में दीप जलाना क्यों होता है शुभ
श्रावण मास को भगवान शिव का महीना माना जाता है। इस महीने में शिव की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है। अमावस्या का दिन जब सावन मास में आता है, तब शिव और पितृ दोनों की कृपा प्राप्त करने का सबसे शुभ योग बनता है।
इस दिन किसी नजदीकी शिव मंदिर में जाकर दीपक जलाएं। दीपक जलाते समय "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जप करें। यह कर्म पितरों के साथ-साथ शिव कृपा भी दिलाता है।
पवित्र नदी में दीपदान का महत्व
हरियाली अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में दीपदान करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी जैसी नदियों में दीपदान करने से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है।
दीपदान के समय एक पत्ते या छोटे दीये में तिल का तेल भरकर बाती जलाएं और नदी में प्रवाहित करें। ऐसा करते समय मन में अपने पूर्वजों का स्मरण करें और उनके लिए प्रार्थना करें।
यह परंपरा केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, भावनात्मक रूप से भी आत्मीय संबंधों को जोड़ने का माध्यम मानी जाती है।
आंगन और तुलसी के पास भी दीप जलाना होता है फलदायी
घर के आंगन में और तुलसी के पास भी दीपक जलाना हरियाली अमावस्या के दिन बेहद शुभ माना गया है। तुलसी माता को देवी का स्वरूप माना जाता है और उनके समीप दीपक जलाने से वातावरण पवित्र रहता है।
रात के समय तुलसी के पास सरसों के तेल का दीपक जलाएं और परिवार के सुख-शांति की प्रार्थना करें। माना जाता है कि पितृ आत्माएं इस स्थान से भी तृप्त होती हैं और आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
गौशाला में दीप जलाना भी पुण्यदायी
कुछ मान्यताओं के अनुसार, हरियाली अमावस्या के दिन गौशाला या जहां गायें रहती हों, वहां भी दीपक जलाना चाहिए। गाय को माता और पवित्र जीव माना गया है। उसकी सेवा और पास दीप जलाना घर में पवित्रता और शुभता का संकेत होता है।
गौशाला जाकर गायों की सेवा करना, चारा देना और वहां दीपक जलाना भी पितृ शांति के लिए अच्छा उपाय माना गया है।
घर की छत या मुख्य द्वार पर दीपक जलाने की परंपरा
हरियाली अमावस्या की रात घर की छत या मुख्य द्वार पर दीपक जलाकर घर के सभी सदस्य पूर्वजों को याद करते हैं। यह परंपरा खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक देखी जाती है।
छत पर दीपक जलाकर आकाश की ओर देखना और पितरों को स्मरण करना एक तरह का श्रद्धांजलि भाव होता है, जो भावनात्मक रूप से उन्हें जोड़ने का कार्य करता है।