माइक्रोसॉफ्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के चलते अमेरिकी डिफेंस क्लाउड के लिए चीन में स्थित इंजीनियरों से तकनीकी सहायता बंद कर दी है। यह कदम ProPublica रिपोर्ट में सामने आई सुरक्षा खामियों के बाद उठाया गया, जिससे विदेशी हस्तक्षेप की आशंका बढ़ी थी।
Microsoft: श्विक तकनीकी दिग्गज माइक्रोसॉफ्ट ने अमेरिकी सरकार और रक्षा विभाग से जुड़ी अपनी तकनीकी सहायता प्रणाली (Tech Support System) में बड़ा बदलाव किया है। कंपनी ने घोषणा की है कि अब चीन में स्थित कोई भी इंजीनियर अमेरिकी डिफेंस क्लाउड या संबंधित सेवाओं को सपोर्ट नहीं करेगा। यह निर्णय हाल ही में आई ProPublica रिपोर्ट और अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच लिया गया है।
क्यों लिया गया यह बड़ा फैसला?
मामले की शुरुआत हुई ProPublica की एक विस्तृत रिपोर्ट से, जिसमें खुलासा किया गया कि अमेरिकी रक्षा विभाग के कई क्लाउड प्रोजेक्ट्स पर चीन के इंजीनियर काम कर रहे थे। ये इंजीनियर माइक्रोसॉफ्ट के Azure Cloud सिस्टम के लिए तकनीकी सहायता प्रदान कर रहे थे, जो कि अमेरिकी सरकार और रक्षा से जुड़े डेटा को संभालता है। इस रिपोर्ट के अनुसार, इन इंजीनियरों की निगरानी 'डिजिटल एस्कॉर्ट्स' नाम की एक प्रणाली से की जा रही थी, जिसमें अमेरिका में बैठे सुपरवाइज़र उन्हें मॉनिटर कर रहे थे। लेकिन आश्चर्यजनक बात यह रही कि उन सुपरवाइज़रों के पास कई बार उन इंजीनियरों से कम तकनीकी समझ थी, जिन्हें वे नियंत्रित कर रहे थे। इससे साइबर स्पाईइंग, डेटा लीक और राष्ट्रीय सुरक्षा में सेंध जैसी आशंकाएं और गहरी हो गईं।
Microsoft का आधिकारिक बयान
Microsoft के चीफ कम्युनिकेशन ऑफिसर फ्रैंक शॉ ने शुक्रवार को X (पूर्व ट्विटर) पर इस संदर्भ में आधिकारिक बयान जारी किया। उन्होंने लिखा: 'इस सप्ताह सामने आई चिंताओं के बाद, माइक्रोसॉफ्ट ने अमेरिकी सरकारी ग्राहकों के लिए अपनी तकनीकी सहायता प्रणाली में बदलाव किए हैं। अब चीन में स्थित कोई भी इंजीनियर डिफेंस क्लाउड या उससे संबंधित सेवाओं के लिए तकनीकी सहायता नहीं देगा।'
Azure क्लाउड पर होगा सीधा असर
यह कदम सीधे तौर पर माइक्रोसॉफ्ट के Azure क्लाउड प्लेटफॉर्म को प्रभावित करता है, जो कंपनी की वैश्विक कमाई का 25% से अधिक हिस्सा बनाता है। Azure की गिनती अब Google Cloud से आगे लेकिन Amazon Web Services (AWS) से पीछे होती है। 2023-24 की तिमाही रिपोर्ट के अनुसार, माइक्रोसॉफ्ट का कुल $70 बिलियन डॉलर का रेवेन्यू आया, जिसमें अमेरिका का योगदान लगभग 50% से अधिक था। इनमें सरकारी और रक्षा अनुबंधों की भूमिका बेहद अहम रही।
पहले भी विवादों में रहा है डिफेंस क्लाउड
माइक्रोसॉफ्ट का डिफेंस क्लाउड इतिहास में भी विवादों से अछूता नहीं रहा है:
- 2019 में माइक्रोसॉफ्ट को अमेरिकी पेंटागन से $10 अरब डॉलर का JEDI क्लाउड कॉन्ट्रैक्ट मिला था।
- 2021 में यह कॉन्ट्रैक्ट कानूनी विवादों में फंसकर रद्द कर दिया गया।
- 2022 में माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न, गूगल और ओरैकल के साथ मिलकर $9 अरब डॉलर की मल्टी-वेंडर डील का हिस्सा बना, जिसे JWCC (Joint Warfighting Cloud Capability) कहा गया।
इस बार माइक्रोसॉफ्ट के फैसले को सुरक्षा-संवेदनशील नीति के रूप में देखा जा रहा है।
ProPublica रिपोर्ट में क्या था खुलासा?
रिपोर्ट के मुताबिक:
- चीन में बैठे इंजीनियर अमेरिकी डिफेंस क्लाउड सिस्टम्स की तकनीकी सहायता कर रहे थे।
- वे 'डिजिटल एस्कॉर्ट्स' सिस्टम के तहत अमेरिकी सुपरवाइज़रों की निगरानी में काम कर रहे थे।
- सुपरवाइज़र्स के पास कई बार तकनीकी समझ सीमित थी, जिससे विदेशी हस्तक्षेप का खतरा बना रहा।
यह पूरा मॉडल एक 'सुरक्षा रिस्क' के रूप में देखा गया, जिस पर तुरंत एक्शन लिया गया।
ग्लोबल टेक इंडस्ट्री को क्या संकेत मिलते हैं?
माइक्रोसॉफ्ट का यह कदम वैश्विक टेक उद्योग को दो अहम संकेत देता है:
- डेटा लोकेशन और सपोर्ट टीम्स अब केवल तकनीकी नहीं, रणनीतिक पहलू बन चुकी हैं।
- क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर में 'डेमोक्रेटिक और एलाइड' देशों की प्राथमिकता बढ़ेगी।
इस फैसले से यह साफ हो गया है कि क्लाउड जैसी सेवा अब भू-राजनीतिक हथियार बन चुकी है और कंपनियों को इसके उपयोग व संरचना में सतर्कता बरतनी होगी।
भारत जैसे देशों को मिलेगा फायदा?
विशेषज्ञों का मानना है कि चीन से माइक्रोसॉफ्ट के दूरी बनाने से भारत, वियतनाम, इंडोनेशिया जैसे मित्र देशों को टेक्निकल सपोर्ट हब बनने का मौका मिल सकता है। भारत, जो पहले ही एक आउटसोर्सिंग पावरहाउस है, अब क्लाउड सिक्योरिटी और डिफेंस-क्लास सपोर्ट के क्षेत्र में खुद को साबित कर सकता है।