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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग: शिव की अनंत ज्योति का प्रतीक

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग: शिव की अनंत ज्योति का प्रतीक

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह पवित्र स्थलों में से एक है, जो गुजरात के द्वारका के पास स्थित है। इसे दारुकावन में स्थापित बताया गया है, जहाँ शिव ने भक्त सुप्रिया की रक्षा की थी। यह मंदिर समुद्र तट के पास है और वास्तुशास्त्र के अनुसार निर्मित है।

Nageshwar Jyotirlinga: नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो द्वारका, गुजरात में अरब सागर के तट के निकट स्थित है। पौराणिक कथाओं में इसे 'दारुकावन' नामक वन में स्थापित बताया गया है और इसे स्वयंभू शिवलिंग माना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग को लेकर ऐतिहासिक, पौराणिक और भौगोलिक दृष्टियों से अनेक मतभेद हैं, जो इस स्थान को एक रहस्यमयी धरोहर बनाते हैं।

शिव और ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कथा

शिव महापुराण के अनुसार, एक बार ब्रह्मा और विष्णु में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है। इस विवाद का समाधान निकालने के लिए भगवान शिव ने स्वयं को एक अग्निपुंज के रूप में प्रकट किया — एक अनंत स्तंभ, जिसे ज्योतिर्लिंग कहा गया। ब्रह्मा स्तंभ के ऊपर की ओर और विष्णु नीचे की ओर गए। विष्णु ने सत्य स्वीकारा कि वह अंत तक नहीं पहुंच सका, जबकि ब्रह्मा ने झूठ बोला कि उसने स्तंभ का सिरा देख लिया है। इस पर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा को श्राप दिया कि उन्हें पूजा में कोई स्थान नहीं मिलेगा। तभी से यह माना गया कि ज्योतिर्लिंग शिव का अनंत स्वरूप है और इन्हीं घटनाओं की स्मृति में 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों की स्थापना हुई।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग: एक परिचय

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का उल्लेख शिवपुराण में मिलता है और इसे दसवें ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर गुजरात के द्वारका के पास स्थित है और अरब सागर के तट पर बना है। यहाँ स्थित शिवलिंग अत्यंत प्राचीन माना जाता है और इसे भगवान शिव की अद्वितीय शक्ति का प्रतीक कहा गया है।

दरुकावन की कथा और दैत्यराज दारुक

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कथा शिवपुराण में वर्णित है। इसके अनुसार, एक समय दरुक नामक राक्षस ने दरुकावन नामक वन पर अधिकार कर लिया था। वह शिवभक्तों को कैद कर लेता और उन्हें यातनाएं देता। उन्हीं में एक सुप्रिया नामक शिवभक्त भी था। उसने कैद में रहते हुए शिव का मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' का जाप प्रारंभ किया और अन्य बंदियों को भी प्रेरित किया। मंत्र की शक्ति से भगवान शिव प्रकट हुए और सुप्रिया को एक दिव्य अस्त्र प्रदान किया जिससे वह राक्षसों का सामना कर सका। अंततः शिव ने राक्षस दारुक को पराजित कर दिया और वहीं स्वयं ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हो गए।

दारुक की पत्नी दारुका एक शिवभक्तिन थी और उसने देवी पार्वती की तपस्या करके वर प्राप्त किया था कि वह जिस भी स्थान पर जाए, वहाँ वन उत्पन्न हो जाए। इसी कारण से उस वन का नाम दरुकावन पड़ा। दारुका ने भी अपने वर का उपयोग करके समुद्र के भीतर वन स्थापित किया और वहां राक्षसों का राज्य स्थापित किया।

नागेश्वर: शिव और शक्ति का मिलन

इस कथा में जहां शिव नागेश्वर के रूप में प्रकट हुए, वहीं देवी पार्वती ने भी नागेश्वरी का स्वरूप ग्रहण किया। यह स्थान केवल शिव की नहीं बल्कि शक्ति की भी उपस्थिति को दर्शाता है। यह मंदिर उन भक्तों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है जो संकट में भी ईश्वर का स्मरण नहीं छोड़ते।

ज्योतिर्लिंगों में स्थान

ज्योतिर्लिंगों की सूची में नागेश्वर का स्थान महत्वपूर्ण है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित अन्य मंदिर हैं:

  1. सोमनाथ (गुजरात)
  2. मल्लिकार्जुन (आंध्रप्रदेश)
  3. महाकालेश्वर (मध्यप्रदेश)
  4. ओंकारेश्वर (मध्यप्रदेश)
  5. केदारनाथ (उत्तराखंड)
  6. भीमाशंकर (महाराष्ट्र)
  7. काशी विश्वनाथ (उत्तरप्रदेश)
  8. त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र)
  9. वैद्यनाथ (झारखंड)
  10. नागेश्वर (गुजरात)
  11. रामेश्वर (तमिलनाडु)
  12. घृष्णेश्वर (महाराष्ट्र)

स्थान विवाद: क्या उत्तराखंड में है असली नागेश्वर

शिवपुराण में वर्णन आता है कि दरुकावन पश्चिम समुद्र के पास स्थित था, जो आज के गुजरात क्षेत्र को सूचित करता है। लेकिन कई विद्वानों का मानना है कि 'दरुकावन' वास्तव में 'दारुवन' (देवदार वृक्षों का वन) था, जो उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित जगेश्वर मंदिर के आस-पास है। वहां के 'जागेश्वर' मंदिर को भी कई लोग नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मानते हैं।

प्रसिद्ध ग्रंथ 'प्रसादमंडनम्' में उल्लेख है:

'हिमाद्रेरूत्तरे पार्श्वे देवदारूवनं परम् पावनं शंकरस्थानं तत्र् सर्वे शिवार्चिताः।'

इसके अनुसार, हिमालय के उत्तर भाग में स्थित देवदार वन, शिव का परम स्थान है। इस कारण से कुछ विद्वान जागेश्वर मंदिर को ही नागेश्वर मानते हैं।

द्वारका या जागेश्वर: प्रमाणों का विश्लेषण

हालांकि कुछ शास्त्र जागेश्वर को प्राथमिकता देते हैं, परंतु शिवपुराण में 'पश्चिमे सागरे' — यानी पश्चिम समुद्र के पास स्थित वन का उल्लेख मिलता है। द्वारका, जो पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित है, इस विवरण से मेल खाता है। इसके अतिरिक्त, हजारों वर्षों से वहाँ नागेश्वर के रूप में शिव की पूजा होती आ रही है। शंकराचार्य द्वारा रचित 'द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र' में भी नागनाथ को 'यम्ये' (दक्षिण दिशा में स्थित) बताया गया है। कुछ विद्वान इसे महाराष्ट्र के औंध क्षेत्र से भी जोड़ते हैं।

नागेश्वर मंदिर की वास्तुकला और विशेषताएं

नागेश्वर मंदिर की वास्तुकला में पारंपरिक शैव शैली का अद्भुत समावेश है। विशाल शिव प्रतिमा, ऊँचे शिखर, और संगमरमर से निर्मित गर्भगृह इसकी विशेषताएं हैं। मंदिर के समीप एक ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा भी स्थापित है जो भक्तों को आकर्षित करती है। मंदिर परिसर शांत, दिव्य और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण है। सावन मास, महाशिवरात्रि, और श्रावण सोमवार के अवसर पर लाखों भक्त यहाँ दर्शन करने आते हैं।

यातायात और पहुँच

नागेश्वर मंदिर गुजरात के द्वारका शहर से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन द्वारका है और हवाई अड्डा जामनगर में स्थित है। गुजरात राज्य परिवहन की बसें और टैक्सियाँ आसानी से उपलब्ध हैं।

आध्यात्मिक महत्त्व

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग वह स्थान है जहाँ संकट में भी शिवभक्त ने ईश्वर का ध्यान नहीं छोड़ा और अंततः शिव को प्रकट किया। यह स्थान न केवल एक पूजास्थल है, बल्कि यह एक आदर्श है उन सभी भक्तों के लिए जो विपरीत परिस्थितियों में भी भक्ति को बनाए रखते हैं।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग शिव की अनंतता, शक्ति और कृपा का मूर्त रूप है। चाहे वह द्वारका के समुद्रतट पर स्थित हो या हिमालय के देवदार वन में, इसका मूल उद्देश्य भक्ति, श्रद्धा और आत्मसमर्पण को जागृत करना है। यह मंदिर केवल स्थापत्य की दृष्टि से नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नयन का भी केंद्र है।

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