राजस्थान के PWD विभाग ने सहायक अभियंता हिमांशु को एपीओ घोषित करने के बावजूद ढाई महीने तक कार्य लिया। जोधपुर हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगाते हुए विभागीय अधिकारियों से 15 जुलाई तक जवाब तलब किया है, जिससे अफसरशाही की मनमानी उजागर हुई है।
झुंझुनूं: राजस्थान के लोक निर्माण विभाग (PWD) की कार्यशैली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। झुंझुनूं जिले के सहायक अभियंता हिमांशु के साथ हुए व्यवहार को लेकर जोधपुर हाईकोर्ट ने विभाग की जमकर खिंचाई की है। कोर्ट ने विभागीय आदेशों पर सख्त टिप्पणी करते हुए पूछा है कि जब एक अधिकारी को एपीओ (Awaiting Posting Order) घोषित कर दिया गया था, तो उससे विभागीय कार्य कैसे लिया गया?
यह मामला न केवल सरकारी कामकाज में लापरवाही का प्रतीक बन चुका है, बल्कि यह भी उजागर करता है कि किस प्रकार विभागीय अफसरशाही की मनमानी एक ईमानदार अधिकारी के करियर को प्रभावित कर सकती है।
क्या है पूरा मामला?
झुंझुनूं निवासी सहायक अभियंता (AEN) हिमांशु ने 20 जनवरी को चूरू जिले के PWD सिटी डिवीजन में पदभार ग्रहण किया था। ठीक दो महीने बाद 17 मार्च को उन्हें एपीओ कर दिया गया। लेकिन यह एपीओ केवल कागज़ों में था, क्योंकि उसके बाद भी विभाग ने उनसे लगातार कार्य लेना जारी रखा।
इतना ही नहीं, अप्रैल में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के दौरे के दौरान भी एपीओ किए जा चुके हिमांशु को विशेष ड्यूटी पर लगाया गया। आखिरकार 3 जून को उन्हें अचानक रिलीव कर दिया गया। यानि एपीओ घोषित करने के बावजूद, उनसे ढाई महीने तक विभागीय काम लिया जाता रहा।
कोर्ट में पेश हुए चौंकाने वाले तथ्य
वरिष्ठ अधिवक्ता संजय महला और सुनीता महला ने कोर्ट में जो तथ्य रखे, वे चौंकाने वाले थे। उन्होंने कहा कि यह मामला केवल नियमों के उल्लंघन का नहीं, बल्कि प्रशासनिक शोषण और अफसरशाही की राजनीति का प्रतीक है।
एडवोकेट महला ने यह भी बताया कि हिमांशु की पत्नी पहले से ही झुंझुनूं में जेईएन के पद पर कार्यरत हैं। सेवा नियमों के अनुसार, पति-पत्नी दोनों को एक ही क्षेत्र में पोस्टिंग दी जानी चाहिए ताकि पारिवारिक संतुलन बना रहे। लेकिन इसके बावजूद, हिमांशु को जयपुर स्थानांतरित कर दिया गया।
हाईकोर्ट की तीखी टिप्पणी
इस पूरे मामले पर अवकाशकालीन न्यायाधीश जस्टिस सुनिल बेनीवाल ने गहरी आपत्ति जताई और हिमांशु के एपीओ आदेश पर स्थगन (Stay) जारी कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि एक अधिकारी को एपीओ किया गया है, तो उससे कोई विभागीय कार्य नहीं लिया जा सकता। ऐसे आदेश विभाग की गंभीर लापरवाही को दर्शाते हैं।
साथ ही कोर्ट ने पीडब्ल्यूडी के प्रमुख सचिव, संयुक्त सचिव और शासन सचिवालय जयपुर सहित अन्य जिम्मेदार अधिकारियों से 15 जुलाई तक जवाब मांगा है। मामले को अगली सुनवाई के लिए भी 15 जुलाई को सूचीबद्ध कर लिया गया है।
उठ रहे हैं कई सवाल
इस मामले ने विभागीय नियमों और ईमानदारी से काम करने वाले अफसरों की स्थिति पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया है। वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कोर्ट में यह भी कहा कि यह पूरा प्रकरण शायद किसी विभागीय साजिश का हिस्सा है, जिसके जरिए एक निष्पक्ष और ईमानदार अधिकारी को टारगेट किया गया।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह केवल एक प्रशासनिक भूल थी या फिर जानबूझकर की गई कार्यवाही थी? क्या नियमों को ताक पर रखकर व्यक्तिगत रंजिश या दबाव में आदेश जारी किए गए? और अगर ऐसा हुआ, तो क्या PWD के वरिष्ठ अधिकारी इस जवाबदेही से बच पाएंगे?
जनता में भी आक्रोश
मामला सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर चर्चाएं तेज हो गई हैं। लोगों का कहना है कि अगर एक अधिकारी को एपीओ कर दिया गया है, तो उससे काम लेना न केवल नियमों का उल्लंघन है बल्कि यह अफसर की गरिमा को भी ठेस पहुंचाने वाला है। कई लोगों ने यह भी कहा कि यह उदाहरण साफ दर्शाता है कि ईमानदार अफसरों को किस तरह सिस्टम में टारगेट किया जाता है।