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सरकारी नौकरी में देरी से नियुक्त कर्मचारियों को नहीं मिलेगा सीनियरिटी का लाभ: दिल्ली हाई कोर्ट

सरकारी नौकरी में देरी से नियुक्त कर्मचारियों को नहीं मिलेगा सीनियरिटी का लाभ: दिल्ली हाई कोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने संवेदनशील नियुक्ति से जुड़ी एक याचिका पर अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि यह सुविधा केवल तत्काल आपातकालीन स्थिति के लिए होती है, और इसे कर्मचारी की मृत्यु के वर्षों बाद आधार बनाकर नहीं मांगा जा सकता। कोर्ट ने यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें याचिकाकर्ता ने अपने पिता की ड्यूटी के दौरान हुई मौत के 30 साल बाद सरकारी नौकरी की मांग की थी। जस्टिस सी. हरिशंकर और जस्टिस ओमप्रकाश शुक्ला की पीठ ने साफ शब्दों में कहा कि संवेदनशील नियुक्ति का उद्देश्य पीड़ित परिवार को तत्काल राहत देना होता है, न कि इसे वर्षों तक लंबित रखकर भविष्य में रोजगार सुरक्षित करना। अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए इसे समयबद्ध प्रक्रिया बताया।

पहले मां ने की थी मांग

मामले में याचिकाकर्ता के पिता विजय कुमार यादव, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) में कांस्टेबल के पद पर तैनात थे। उनका निधन सितंबर 1988 में ड्यूटी के दौरान हुआ था। इसके बाद साल 2000 में उनकी पत्नी ने संवेदनशील नियुक्ति की मांग की थी, लेकिन उस समय आवश्यक शैक्षणिक योग्यता पूरी न होने के कारण उनका आवेदन खारिज कर दिया गया।

इसके बाद, वर्ष 2018 में याचिकाकर्ता ने, जो तब बालिग हो चुका था, अपनी मां के साथ फिर से नियुक्ति की मांग करते हुए आवेदन दिया। याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि 2018 में वह सभी आवश्यक योग्यताओं के साथ आवेदन कर रहा है, इसलिए नियुक्ति दी जानी चाहिए।

संवेदनशील नियुक्ति कोई विकल्प नही

हालांकि, विभाग ने जनवरी 2020 में स्पष्ट कर दिया कि याचिकाकर्ता को संवेदनशील नियुक्ति के लिए अनुशंसित नहीं किया गया है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दो टूक कहा कि संवेदनशील नियुक्ति कोई वैकल्पिक भर्ती प्रक्रिया नहीं है। इसका उद्देश्य परिवार को उस आपात स्थिति से उबारना है, जो कर्मचारी की मृत्यु के तुरंत बाद उत्पन्न होती है। यह अधिकार अनिश्चितकाल तक जीवित नहीं रहता, और समय के साथ इसकी वैधता समाप्त हो जाती है।

अदालत ने कहा कि ऐसी मांग वर्षों बाद पेश करना व्यवस्था के उद्देश्य के खिलाफ है। यह कोई दीर्घकालिक दावा नहीं, बल्कि तात्कालिक सहायता का प्रावधान है, जिसे समयसीमा के भीतर ही लागू किया जाना चाहिए।

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