भारत 30,000 करोड़ रुपये की लागत से चीन, बांग्लादेश, म्यांमार और भूटान सीमा से जुड़े इलाकों में 500 किलोमीटर लंबी रेल लाइन बनाने जा रहा है। यह परियोजना चार साल में पूरी होगी और इसका उपयोग नागरिकों की आवाजाही, सामान ढुलाई और जरूरत पड़ने पर सेना की तैनाती के लिए किया जाएगा।
Railway: भारत सरकार ने पूर्वोत्तर में चीन से लगती सीमा पर 500 किलोमीटर लंबी रेल लाइन बिछाने की मंजूरी दी है। करीब 30,000 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली यह परियोजना चार वर्षों में पूरी होगी। रेल नेटवर्क न सिर्फ चीन बल्कि बांग्लादेश, म्यांमार और भूटान की सीमाओं को भी जोड़ेगा। पुलों और सुरंगों से युक्त यह लाइन कठिन इलाकों में नागरिकों की पहुंच आसान करेगी और सैन्य जरूरतों में भी मददगार साबित होगी। यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब भारत और चीन के रिश्ते सुधरते दिख रहे हैं, लेकिन सीमा सुरक्षा के लिए भारत दीर्घकालिक तैयारी कर रहा है।
दुर्गम इलाकों में आसान होगी पहुंच
नई रेल लाइन से पूर्वोत्तर के दूरस्थ और पहाड़ी इलाकों तक लोगों की आवाजाही आसान होगी। अब तक इन इलाकों में सड़क से सफर लंबा और मुश्किल भरा होता था। रेल कनेक्टिविटी मिलने के बाद न केवल स्थानीय लोगों के लिए सुविधाएं बढ़ेंगी बल्कि सामान ढोना भी सस्ता और तेज हो जाएगा।
सीमा से सटे इलाकों में रेलवे नेटवर्क का विस्तार रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम है। जरूरत पड़ने पर सेना रेल लाइन का इस्तेमाल कर सकेगी। हथियार, रसद और जवानों की आवाजाही तेजी से हो सकेगी। इस परियोजना को खासकर इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि भारत और चीन के रिश्तों में उतार-चढ़ाव बने रहते हैं। हाल ही में संबंधों में सुधार के संकेत मिले हैं, लेकिन भारत हर परिस्थिति के लिए तैयारी कर रहा है।
पुल और सुरंगों से गुजरेगी ट्रेन
परियोजना के तहत बनने वाली 500 किलोमीटर रेल लाइन में कई पुल और सुरंगें शामिल होंगी। पहाड़ी इलाकों और दुर्गम वादियों को जोड़ने के लिए इंजीनियरिंग के कई चुनौतीपूर्ण काम किए जाएंगे। रेलवे के अधिकारी बताते हैं कि सुरक्षा और समयसीमा दोनों का ध्यान रखते हुए काम को पूरा करने की कोशिश होगी।
भारत और चीन के रिश्ते लंबे समय से उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। कभी आपसी सहयोग बढ़ा तो कभी सीमा विवाद ने तनाव पैदा किया। 2020 में सीमा पर हुई झड़पों के बाद से भारत ने लगातार सीमा क्षेत्रों में सड़क और रेल नेटवर्क को मजबूत करना शुरू किया। नई परियोजना इसी लंबी सोच का हिस्सा है। यह सिर्फ मौजूदा हालात नहीं बल्कि भविष्य को ध्यान में रखकर बनाई गई है।
सड़क ढांचे को मिलेगा सहारा
रेलवे नेटवर्क का विस्तार पूर्वोत्तर में सड़क ढांचे को भी मजबूती देगा। पिछले एक दशक में भारत ने यहां 9,984 किलोमीटर नए राजमार्ग बनाए हैं। इस पर 1.07 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च किया गया। इसके अलावा 5,055 किलोमीटर सड़कें अभी निर्माणाधीन हैं। अब रेल और सड़क दोनों सुविधाएं मिलकर स्थानीय लोगों के लिए आवाजाही आसान करेंगी। साथ ही आपदा या आपातकालीन हालात में यह नेटवर्क जीवन रक्षक साबित होगा।
पिछले दस साल की रेल उपलब्धियां
भारत ने पिछले दस वर्षों में पूर्वोत्तर क्षेत्र में 1,700 किलोमीटर नई रेल लाइन बिछाई है। अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और मिजोरम जैसे राज्यों तक पहली बार रेल पहुंची। इससे यहां आर्थिक और सामाजिक बदलाव आया। अब नई सीमा रेल परियोजना उस बदलाव को और आगे ले जाएगी।
एयरफोर्स की तैयारी भी जारी
रेल और सड़क ढांचे के साथ भारत ने एयरफोर्स की क्षमताओं पर भी ध्यान दिया है। पिछले कुछ सालों में कई एडवांस लैंडिंग ग्राउंड को फिर से शुरू किया गया है। 1962 के बाद बंद पड़े इन ग्राउंड्स पर अब हेलिकॉप्टर और सैन्य विमान उतरने लगे हैं। इससे सीमावर्ती इलाकों में एयरफोर्स की ताकत बढ़ी है।
लद्दाख और कश्मीर में भी अध्ययन
रेल मंत्रालय और सरकार लद्दाख क्षेत्र में नई रेल लाइनों पर भी विचार कर रहे हैं। अभी कश्मीर घाटी में रेल नेटवर्क बारामूला तक ही है। इसे आगे बढ़ाने की योजना पर भी चर्चा हो रही है। हालांकि इस पर आधिकारिक घोषणा अभी बाकी है।
यह रेल परियोजना न केवल सीमावर्ती इलाकों की तस्वीर बदल देगी बल्कि भारत की रणनीतिक तैयारी को भी मजबूत करेगी।