नागपुर में आयोजित सम्मान समारोह में CJI बीआर गवई भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि उनके पिता कहते थे कि वह एक दिन सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बनेंगे, लेकिन वे अब इस पल को देखने के लिए जीवित नहीं हैं।
Maharashtra: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि उनके पिता हमेशा कहते थे कि वे एक दिन सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बनेंगे, लेकिन अफसोस कि उनके पिता अब इस मुकाम को देखने के लिए जीवित नहीं हैं।
नागपुर में सम्मान समारोह के दौरान भावुक हुए CJI
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) बीआर गवई शनिवार को नागपुर में आयोजित एक सम्मान समारोह में शामिल हुए। इस कार्यक्रम का आयोजन नागपुर जिला वकील संघ द्वारा किया गया था। कार्यक्रम के दौरान CJI गवई ने अपने जीवन और परिवार के उस संघर्ष को साझा किया, जिसने उन्हें देश की सर्वोच्च न्यायिक कुर्सी तक पहुंचाया।
अपने भाषण के दौरान उन्होंने अपने पिता को याद करते हुए कहा, "मेरे पिता हमेशा कहते थे कि मैं एक दिन सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनूंगा। आज वह सपना तो पूरा हुआ, लेकिन अफसोस कि वह इस दिन को देखने के लिए जीवित नहीं हैं। उनके 2015 में निधन के बाद यह एक खालीपन बनकर रह गया है। मुझे खुशी है कि मेरी मां आज इस महत्वपूर्ण मौके पर यहां मौजूद हैं।"
मराठी में दिया भावनात्मक भाषण
CJI गवई ने समारोह में मराठी भाषा में अपना भाषण दिया। उन्होंने अपने भाषण में न्यायपालिका की भूमिका, न्यायिक सक्रियता और संविधान की सीमाओं को लेकर विस्तार से बात की। उन्होंने कहा, "क्या किसी ने मेरा ऑक्सफोर्ड में दिया गया भाषण पढ़ा है? उसमें मैंने कहा था कि न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) का बने रहना आवश्यक है, ताकि संविधान की रक्षा और नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।"
भारतीय संविधान की सीमाओं पर बोले CJI
अपने संबोधन में सीजेआई गवई ने कहा कि भारतीय संविधान ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की सीमाएं स्पष्ट रूप से निर्धारित की हैं। कानून बनाना विधायिका का कार्य है, चाहे वह संसद हो या राज्य विधानसभाएं। कार्यपालिका से अपेक्षा की जाती है कि वह संविधान और कानून के अनुसार कार्य करे।
उन्होंने कहा, "यदि कोई कानून संसद या विधानसभा द्वारा पारित होता है, और वह संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, तब न्यायपालिका का हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है। लेकिन न्यायपालिका को हर मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।"
न्यायिक सक्रियता बनाम न्यायिक दुस्साहस
सीजेआई गवई ने इस मौके पर न्यायिक सक्रियता की सीमाओं पर भी ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा, "मैं हमेशा कहता हूं कि न्यायिक सक्रियता जरूरी है, लेकिन उसे न्यायिक दुस्साहस (Judicial Adventurism) या न्यायिक आतंक (Judicial Terrorism) में बदलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। न्यायपालिका को केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप करना चाहिए, जहां यह संविधान की रक्षा और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक हो।"