सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में SIR प्रक्रिया को मतदाता विरोधी नहीं माना। अभिषेक मनु सिंघवी की दलील खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि दस्तावेज जांच केवल मतदाता हित और सुविधा के लिए है।
Bihar Voter List: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (SIR) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर स्पष्ट रुख अपनाया है। कोर्ट ने कहा कि यह कदम मतदाताओं को परेशान करने या सूची से बाहर करने के लिए नहीं है। बल्कि यह पहल मतदाताओं की सुविधा और चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए उठाई गई है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच में जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची शामिल थे। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि निर्वाचन आयोग का दस्तावेज जांच अभियान किसी भी तरह से मतदाता विरोधी नहीं है।
अभिषेक मनु सिंघवी की दलील और कोर्ट की प्रतिक्रिया
वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में दलील दी कि दस्तावेज जांच अभियान मतदाताओं के खिलाफ है और यह उन्हें मतदाता सूची से बाहर करने का प्रयास है। उन्होंने इसे एंटी-वोटर और अलगाववादी कहा।
लेकिन जस्टिस बागची ने इसे खारिज करते हुए कहा कि यह दलील तर्कहीन है। उन्होंने स्पष्ट किया कि दस्तावेजों की जांच मतदाताओं की सुविधा के लिए की जा रही है। जस्टिस बागची ने कहा, "जरा देखें कितने सारे दस्तावेजों से आप नागरिकता साबित कर सकते हैं। यह असल में मतदाताओं के हक में है, उनके खिलाफ नहीं।" जस्टिस सूर्य कांत ने भी इस तर्क का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि अगर केवल एक दस्तावेज मांगा जाता है, तो यह मतदाता विरोधी नहीं माना जा सकता।
SIR क्या है और क्यों लागू किया गया
SIR का मतलब है Special Intensive Revision, यानी मतदाता सूची का विशेष गहन संशोधन। यह प्रक्रिया निर्वाचन आयोग द्वारा हर वोटर की जानकारी को अपडेट करने और सत्यापित करने के लिए अपनाई जाती है।
इस प्रक्रिया में दस्तावेजों के जरिए नागरिकता और मतदान के हक की पुष्टि की जाती है। इसके जरिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि मतदाता सूची में केवल वही लोग शामिल हों जो चुनाव में मतदान करने के योग्य हैं।