प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा से पहले व्हाइट हाउस ने रूस से तेल खरीद और BRICS की नजदीकियों को लेकर चिंता जताई है। भारत को 'स्ट्रैटेजिक पार्टनर' बताया गया।
PM Modi China Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही चीन की यात्रा पर जा रहे हैं। यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिका ने BRICS देशों पर रूस से सस्ता तेल खरीदने और डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने को लेकर सवाल उठाए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति के बीच मोदी की यह यात्रा वैश्विक राजनीति में बड़े संकेत दे रही है। व्हाइट हाउस ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत को ‘स्ट्रैटेजिक पार्टनर’ बताया, लेकिन रूस से तेल खरीद पर असहमति भी जताई है।
मोदी की सात साल बाद चीन यात्रा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में चीन की यात्रा पर जा रहे हैं। वे 31 अगस्त से 1 सितंबर के बीच तियानजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में हिस्सा लेंगे। यह उनकी 2018 के बाद पहली चीन यात्रा होगी। साथ ही, 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद यह पहली बार होगा जब पीएम मोदी चीन की धरती पर कदम रखेंगे।
SCO समिट में भारत के अलावा चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान, कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान जैसे नौ सदस्य देश हिस्सा लेंगे। यह समिट ऐसे वक्त में हो रही है जब अमेरिका, खासकर राष्ट्रपति ट्रंप, BRICS देशों पर रूस से सस्ता तेल खरीदने और अमेरिकी डॉलर की भूमिका को चुनौती देने को लेकर लगातार हमलावर हैं।
ट्रंप की नाराजगी: रूस से तेल खरीद और डॉलर पर सवाल
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में BRICS देशों की रूस के प्रति बढ़ती नजदीकियों पर सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि BRICS देश रूस से सस्ता तेल खरीद रहे हैं और डॉलर की जगह दूसरी करंसी को बढ़ावा देकर अमेरिकी आर्थिक प्रभुत्व को चुनौती दे रहे हैं।
व्हाइट हाउस का जवाब
व्हाइट हाउस में विदेश विभाग के प्रिंसिपल उपप्रवक्ता टॉमी पिगॉट से जब पीएम मोदी की चीन यात्रा और BRICS की एकजुटता को लेकर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने संतुलित प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि भारत अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है और दोनों देशों के बीच दोस्ताना संबंध हैं, जो आगे भी बने रहेंगे।
हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि राष्ट्रपति ट्रंप भारत के साथ व्यापार असंतुलन को लेकर काफी स्पष्ट हैं, विशेष रूप से रूस से तेल खरीद के मामले में। पिगॉट ने कहा कि जैसे कि विदेश नीति में होता है, हर बात पर सौ फीसदी सहमति संभव नहीं होती। लेकिन भारत के साथ अमेरिका के संबंध मजबूत हैं।
क्या BRICS बना रहा है अमेरिका के खिलाफ गठजोड़?
ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका से बने BRICS समूह को अमेरिका अब केवल आर्थिक साझेदारी के मंच के रूप में नहीं देख रहा है। अमेरिकी नीति निर्माताओं का मानना है कि यह समूह अब वैश्विक आर्थिक संरचना को चुनौती देने की दिशा में बढ़ रहा है।
विशेषकर डॉलर की जगह स्थानीय करंसी में व्यापार को बढ़ावा देना और रूस जैसे प्रतिबंधित देश से ऊर्जा खरीदना, अमेरिका की चिंता बढ़ा रहा है। चीन और रूस BRICS के माध्यम से पश्चिमी देशों के प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश में हैं, और भारत की भागीदारी इस समीकरण में अहम भूमिका निभा रही है।
SCO समिट और भारत की रणनीति
SCO यानी शंघाई सहयोग संगठन का गठन सुरक्षा, आतंकवाद और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे मुद्दों को लेकर किया गया था। हालांकि, समय के साथ इसमें आर्थिक और सामरिक विषयों पर भी चर्चा होने लगी है। भारत, जो 2017 से SCO का पूर्ण सदस्य है, इस मंच को बहुपक्षीय संवाद और सहयोग का अवसर मानता है।
इस बार समिट में प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी कई मायनों में अहम मानी जा रही है। पहली बात तो यह कि चीन के साथ संबंधों में तनाव के बावजूद भारत इस समिट में हिस्सा ले रहा है। दूसरी बात, रूस से भारत के रिश्ते और ऊर्जा खरीद को लेकर अमेरिका की नाराजगी के बीच यह यात्रा भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को दर्शा रही है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की चीन यात्रा का संदर्भ
कुछ महीने पहले जून में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी चीन के किंगदाओ में आयोजित SCO रक्षा मंत्रियों की बैठक में शामिल हुए थे। उस दौरान उन्होंने एक ऐसे दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था, जिससे भारत की आतंकवाद के प्रति सख्त नीति पर असर पड़ सकता था। यह संकेत था कि भारत बहुपक्षीय मंचों पर भी अपनी स्थिति को स्पष्टता से रख रहा है।