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पंजाब में लैंड पूलिंग नीति रद्द, सरकार का बड़ा यू-टर्न किसानों के पक्ष में

पंजाब में लैंड पूलिंग नीति रद्द, सरकार का बड़ा यू-टर्न किसानों के पक्ष में

हाई कोर्ट की रोक और किसानों के विरोध के बाद पंजाब सरकार ने 14 मई 2025 की विवादास्पद लैंड पूलिंग नीति और सभी संशोधन वापस ले लिए। जारी सभी LOI, पंजीकरण और नीतिगत कार्रवाइयां रद्द।

Punjab: पंजाब सरकार ने 14 मई 2025 को लागू की गई विवादास्पद लैंड पूलिंग नीति और उसके बाद किए गए सभी संशोधनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है। मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार ने यह निर्णय उस समय लिया है, जब नीति पर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने अंतरिम रोक लगा दी थी और किसानों के साथ-साथ विपक्षी दलों का विरोध तेज हो गया था।

सरकार का औपचारिक ऐलान

आवास एवं शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव ने सोमवार को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि 14 मई 2025 की भूमि पूलिंग नीति और उसके सभी संशोधन तत्काल प्रभाव से रद्द किए जाते हैं। इस घोषणा के साथ ही इस नीति के तहत अब तक जारी सभी आशय पत्र (Letter of Intent - LOI), पंजीकरण और अन्य सभी नीतिगत कार्यवाही को समाप्त कर दिया गया है।

लैंड पूलिंग नीति क्या थी

लैंड पूलिंग पॉलिसी का उद्देश्य शहरी विकास को तेज करना और भूमि मालिकों को विकास प्रक्रिया में भागीदार बनाना था। इसके तहत किसानों या भूमि मालिकों से जमीन ली जाती थी और बदले में विकसित भूमि का एक हिस्सा तथा नकद मुआवजा दिया जाता था। सरकार का कहना था कि यह नीति योजनाबद्ध तरीके से नई कॉलोनियां, इंफ्रास्ट्रक्चर और व्यावसायिक केंद्र बनाने में मदद करेगी।

विवाद क्यों बढ़ा

हालांकि, इस नीति के लागू होते ही किसान संगठनों और विपक्षी दलों ने विरोध शुरू कर दिया। उनका आरोप था कि यह योजना किसानों की उपजाऊ जमीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश है और इसका लाभ बड़े बिल्डरों को मिलेगा।

विरोध करने वालों का कहना था कि इससे कृषि उत्पादन घटेगा, किसानों की आजीविका पर असर पड़ेगा और पंजाब का कृषि ढांचा कमजोर होगा। कई राजनीतिक दलों ने इसे “भूमि हड़पने की योजना” करार दिया।

हाई कोर्ट की रोक ने बदली सियासी स्थिति

लुधियाना के एडवोकेट गुरदीप सिंह गिल ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर इस नीति को चुनौती दी। याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल और न्यायमूर्ति दीपक मनचंदा की खंडपीठ ने 7 अगस्त को इस पर अंतरिम रोक लगा दी।

अदालत ने कहा कि जिस भूमि का अधिग्रहण किया जाना है, वह पंजाब राज्य की सबसे उपजाऊ भूमि में से एक है। इससे सामाजिक और पर्यावरणीय असर पड़ सकता है, इसलिए फिलहाल इसके क्रियान्वयन पर रोक जरूरी है।

सुखबीर बादल का दावा — "जनता की जीत"

नीति वापसी के तुरंत बाद शिरोमणि अकाली दल (SAD) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने इसे जनता की जीत बताया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा कि किसानों, मजदूरों और दुकानदारों ने एकजुट होकर सरकार को पीछे हटने के लिए मजबूर किया। बादल ने आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी इस योजना के जरिए दिल्ली के बिल्डरों से 30,000 करोड़ रुपये इकट्ठा कर देशभर में पार्टी का विस्तार करना चाहती थी। उन्होंने इस नीति को “भूमि हड़पने की साजिश” बताया।

किसानों की चिंताएं

किसानों का कहना था कि लैंड पूलिंग के जरिए उनकी जमीन का इस्तेमाल ऐसे प्रोजेक्ट्स के लिए होगा, जिनसे उन्हें सीधा लाभ नहीं मिलेगा। विकसित भूमि का जो हिस्सा उन्हें लौटाया जाएगा, वह खेती के लिए उपयुक्त नहीं होगा। इसके अलावा, किसानों को डर था कि मुआवजा राशि और भूमि का हिस्सा दोनों ही लंबी कानूनी प्रक्रियाओं में अटक सकते हैं। पंजाब के कई जिलों में किसानों ने धरना-प्रदर्शन कर इस नीति को रद्द करने की मांग की थी।

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