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ऑपरेशन सिंदूर के मेजर अरुण शर्मा और माता-पिता 10 साल पुराने दहेज मामले में मुंबई कोर्ट से बरी

ऑपरेशन सिंदूर के मेजर अरुण शर्मा और माता-पिता 10 साल पुराने दहेज मामले में मुंबई कोर्ट से बरी

ऑपरेशन सिंदूर में योगदान देने वाले मेजर अरुण शर्मा और उनके माता-पिता को मुंबई कोर्ट ने 10 साल पुराने दहेज उत्पीड़न केस में बरी कर बड़ी राहत दी। कोर्ट ने जमानती दस्तावेज भी लौटाने का आदेश दिया।

Mumbai News: मुंबई की एस्प्लेनेड कोर्ट ने ऑपरेशन सिंदूर में योगदान देने वाले मेजर अरुण शर्मा और उनके माता-पिता को 10 साल पुराने दहेज उत्पीड़न मामले में बरी कर दिया। राजस्थान में तैनात मेजर शर्मा और उनके माता-पिता पर पत्नी की ओर से धारा 498A और 34 के तहत दर्ज आरोप थे, जिन्हें कोर्ट ने झूठा मानते हुए खारिज कर दिया।

झूठे केस ने छीन लिए मेजर शर्मा के 10 साल

वकील पांडे ने कोर्ट में बताया कि यह केस मेजर अरुण शर्मा और उनके माता-पिता के जीवन के 10 साल छीन गया। इस दौरान मेजर शर्मा के माता-पिता, जो वरिष्ठ नागरिक हैं, कई गंभीर बीमारियों से जूझते रहे। मेजर शर्मा, जो सेना में कर्नल पद पर कार्यरत हैं, देश की सेवा करते हुए “ऑपरेशन सिंदूर” में भी शामिल रहे।

वकील पांडे ने कहा कि झूठे आरोपों के कारण मेजर शर्मा को बार-बार कोर्ट में पेश होना पड़ा और उनकी व्यक्तिगत गरिमा को नुकसान पहुंचा। शिकायतकर्ता और उसके पिता न तो मुंबई कोर्ट में आए और न ही दिल्ली की कोर्ट में, जहां उनका तलाक केस चल रहा था। बाद में दिल्ली कोर्ट ने तलाक को मंजूरी भी दे दी।

मेडिकल रिपोर्ट में खुला सच, शिकायतकर्ता ने ही पहुंचाई चोट

मेजर शर्मा के वकील ने कहा कि इस मामले में मेडिकल सबूतों से यह स्पष्ट हुआ कि शिकायतकर्ता ने ही मेजर शर्मा को शारीरिक चोट पहुंचाई थी। इसके बावजूद, शिकायतकर्ता लगातार कोर्ट में पेश होने से बचती रही। वकील पांडे ने बताया कि शिकायतकर्ता ने आर्मी कोर्ट से करीब 40 लाख रुपये भरण-पोषण के रूप में भी मांगे, जबकि इसके लिए कोई ठोस आधार नहीं था।

किसी भी ठोस साक्ष्य के अभाव में कोर्ट ने पाया कि केवल आरोपों के आधार पर दोषसिद्धि संभव नहीं है।

25 बार कोर्ट गए, लेकिन सुनवाई टलती रही

वकील पांडे ने कहा कि इस केस में उन्होंने 25 से अधिक बार कोर्ट से केस बंद करने के लिए आवेदन दिया। इसके बावजूद कोर्ट ने लंबे समय तक केस को खुला रखा। अभियोजन ने कई बार शिकायतकर्ता को बुलाने की कोशिश की, लेकिन वह उपस्थित नहीं हुई।

वकील ने इसे साफ तौर पर कानून और न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग का उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि ऐसे झूठे मामलों में अक्सर पुरुषों की सुरक्षा के लिए कोई विशेष कानून मौजूद नहीं है।

सबूत न मिलने पर मुंबई कोर्ट ने दी बरी करने की राहत

8 सितंबर 2025 को प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट (मुंबई) प्रशांत सुरेश घोड़के ने मेजर अरुण शर्मा और उनके माता-पिता को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। कोर्ट ने जमानती दस्तावेज लौटाने का आदेश भी जारी किया।

वकील पांडे ने कहा कि यह फैसला न्याय की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, खासकर उन सैनिकों के लिए जो देश की सेवा करते हुए झूठे मामलों का सामना कर रहे हैं।

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