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पुत्रदा एकादशी पर आरती के बिना अधूरी मानी जाती है पूजा, जानें इसका महत्व

पुत्रदा एकादशी पर आरती के बिना अधूरी मानी जाती है पूजा, जानें इसका महत्व

हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस वर्ष यह पावन तिथि आज यानि, 5 अगस्त को पड़ रही है। भक्तों द्वारा यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए किया जाता है। विशेष रूप से संतान सुख की प्राप्ति के लिए यह दिन बेहद शुभ माना जाता है।

धार्मिक परंपरा के अनुसार, इस दिन व्रत रखने के साथ ही लक्ष्मी-नारायण की पूजा और एकादशी माता की आरती करना बहुत जरूरी होता है। मान्यता है कि जो भक्त पूरे नियम और श्रद्धा से व्रत करता है, उसे जीवन में सुख, समृद्धि और संतान संबंधी समस्याओं से राहत मिलती है।

आरती के बिना अधूरी मानी जाती है पूजा

पुत्रदा एकादशी पर पूजा का विशेष महत्व है, लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी माता की आरती किए बिना यह पूजा अधूरी मानी जाती है। आरती न केवल श्रद्धा का प्रतीक होती है, बल्कि यह देवी-देवताओं को प्रसन्न करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी होती है।

इस दिन भक्त सुबह जल्दी स्नान कर उपवास का संकल्प लेते हैं। फिर घर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीप जलाकर पूजा की जाती है। आरती के समय शुद्ध वातावरण में आरती का पाठ किया जाता है, जिससे पूरे घर का माहौल भक्तिमय हो जाता है।

एकादशी माता की आरती का पाठ

एकादशी माता की आरती का पाठ कई भक्तों के लिए एक परंपरा है, जिसे वे हर एकादशी को करते हैं। इस आरती में वर्ष भर की सभी एकादशियों का उल्लेख किया गया है। साथ ही इसमें यह भाव भी प्रकट होता है कि एकादशी व्रत से मोक्ष, सुख और पुण्य की प्राप्ति होती है।

आरती के आरंभ में एकादशी माता की जय बोली जाती है, और बताया जाता है कि इस दिन व्रत करने वाला व्यक्ति विष्णु पूजा से शक्ति और मुक्ति दोनों प्राप्त करता है। इसके बाद आरती में महीने-दर-महीने आने वाली एकादशियों के नाम और उनके महत्व को गिनाया गया है।

आरती में मार्गशीर्ष की उत्पन्ना, पौष की सफला, माघ की षटतिला, चैत्र की कामदा, बैसाख की वरूथिनी, आषाढ़ की योगिनी, श्रावण की कामिका, भाद्रपद की अजा, अश्विन की इन्द्रा, कार्तिक की रमा और देवोत्थानी, मार्गशीर्ष की मोक्षदा तथा पद्मिनी आदि एकादशियों का उल्लेख होता है।

आरती में छिपा होता है आध्यात्मिक संदेश

एकादशी की आरती न केवल धार्मिक परंपरा है, बल्कि इसमें गहरा आध्यात्मिक संदेश भी होता है। आरती के अंत में यह बताया गया है कि जो भी भक्त इस आरती का पाठ श्रद्धा से करता है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। आरती के हर चरण में भक्ति, ज्ञान और व्रत की महिमा का गुणगान किया गया है।

भक्त इस आरती को गाकर यह प्रार्थना करते हैं कि एकादशी माता उनके पापों का नाश करें और उन्हें विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त हो। आरती के बोल साधारण हैं लेकिन भाव अत्यंत गहन होते हैं। यह भक्त और भगवान के बीच एक आत्मीय संबंध स्थापित करता है।

व्रत की तैयारी और नियम

पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले भक्त एक दिन पहले यानी दशमी तिथि की रात से ही सात्विक भोजन करते हैं। एकादशी के दिन निर्जल या फलाहारी उपवास किया जाता है। पूजा के दौरान तुलसी पत्र, पीले फूल, पीले वस्त्र, पंचामृत, धूप, दीप, अक्षत और गंगाजल का प्रयोग किया जाता है।

रात्रि में भगवान विष्णु की कथा और भजन-कीर्तन करना शुभ माना जाता है। अगले दिन यानी द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन कराकर और उन्हें दान देकर व्रत पूर्ण किया जाता है।

मंदिरों और घरों में हो रही विशेष तैयारियां

इस एकादशी को लेकर मंदिरों में विशेष तैयारी की जा रही है। कई स्थानों पर लक्ष्मी-नारायण की विशेष झांकी सजाई जा रही है। वहीं भक्त घरों में भी साफ-सफाई कर पूजन स्थल को सजाते हैं। पूजा के लिए केले के पत्ते, आम के पत्ते और रंगोली का उपयोग किया जा रहा है।

व्रती महिलाएं एक दिन पहले ही पूजा सामग्री जुटा लेती हैं और व्रत के दिन सुबह से ही पूजा में लग जाती हैं। कई स्थानों पर सामूहिक रूप से एकादशी की आरती का आयोजन भी किया जाता है, जहां भक्त मिलकर आरती गाते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं।

संतान प्राप्ति के लिए खास मानी जाती है यह तिथि

पुत्रदा एकादशी नाम से ही स्पष्ट है कि यह व्रत संतान प्राप्ति की कामना के लिए किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो दंपत्ति संतान सुख की इच्छा रखते हैं, यदि वे इस दिन विधिपूर्वक उपवास रखते हैं और एकादशी माता की आरती करते हैं, तो उन्हें विशेष फल प्राप्त होता है।

पुराणों में भी उल्लेख है कि इस दिन का व्रत पुण्य प्रदान करने वाला होता है और भगवान विष्णु की विशेष कृपा से जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। एकादशी माता की आरती इस व्रत का अभिन्न हिस्सा है, जो पूरे व्रत को पूर्णता देती है।

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