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सावन में क्यों होता है स्कंद षष्ठी का विशेष महत्व? जानिए इसके पीछे की कथा

सावन में क्यों होता है स्कंद षष्ठी का विशेष महत्व? जानिए इसके पीछे की कथा

सावन का महीना जैसे ही शुरू होता है, शिवभक्तों की आस्था और भक्ति का सैलाब उमड़ पड़ता है। इस माह में कई खास व्रत और त्योहार आते हैं, जिनमें से एक है स्कंद षष्ठी। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित होता है। सावन में इसका महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि यह महीना खुद भगवान शिव को समर्पित माना गया है। ऐसे में जब स्कंद षष्ठी सावन में आती है, तो इसका पुण्यफल कई गुना अधिक माना जाता है।

कौन हैं भगवान स्कंद

भगवान स्कंद को कार्तिकेय, मुरुगन, कुमारस्वामी और षण्मुख के नाम से जाना जाता है। इन्हें युद्ध का देवता और देवताओं का सेनापति माना जाता है। कहते हैं कि उन्होंने ही राक्षस तारकासुर का वध कर देवताओं को भयमुक्त किया था। भगवान स्कंद का जन्म धर्म की रक्षा के लिए हुआ था और इसलिए इन्हें साहस, वीरता और नीति का प्रतीक माना जाता है।

स्कंद षष्ठी का धार्मिक महत्व

स्कंद षष्ठी का पर्व हर माह शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को आता है, लेकिन जब यह तिथि सावन में आती है, तब इसका महत्व विशेष रूप से बढ़ जाता है। यह व्रत संतान सुख, शत्रु नाश, रोग मुक्ति और पारिवारिक कल्याण के लिए किया जाता है।

इस दिन भगवान कार्तिकेय की विशेष पूजा की जाती है, जिनके बारे में मान्यता है कि वे बाल रूप में भी असीम बल, बुद्धि और पराक्रम के धनी थे। दक्षिण भारत में यह पर्व विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में भगवान मुरुगन के मंदिरों में विशाल मेलों और धार्मिक आयोजनों की परंपरा है।

सावन में क्यों और अधिक फलदायी होता है यह व्रत

श्रावण मास शिवभक्ति का महीना है। भगवान शिव की उपासना इस माह में विशेष रूप से पुण्यकारी मानी जाती है। चूंकि भगवान स्कंद, शिव-पार्वती के पुत्र हैं, इसलिए उनका व्रत इस माह में करने से भक्तों को शिवकृपा और कार्तिकेय का आशीर्वाद दोनों प्राप्त होते हैं।

यह व्रत विशेष रूप से माता-पिता द्वारा संतान प्राप्ति की कामना से किया जाता है। साथ ही यह व्रत घर में सुख, शांति, साहस और आध्यात्मिक बल की प्राप्ति के लिए भी शुभ माना गया है।

स्कंद षष्ठी की पूजा कैसे करें

इस दिन व्रती व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए और शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद भगवान स्कंद की मूर्ति या चित्र के समक्ष व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

पूजा में पीले और लाल फूल, चंदन, धूप, दीप और केवड़े का इत्र प्रयोग करना शुभ होता है। भोग में नारियल, गुड़, केला और कंद-मूल अर्पित किया जाता है।

इस दिन भगवान स्कंद की स्तुति के लिए "सुब्रह्मण्य अष्टकम", "स्कंद षष्ठी कवचम्" और अन्य मंत्रों का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। संध्या समय दीप जलाकर आरती करें और स्कंद षष्ठी की कथा अवश्य सुनें।

स्कंद षष्ठी से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार तारकासुर नामक एक राक्षस ने घोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि उसे केवल भगवान शिव का पुत्र ही मार सकेगा। उस समय शिवजी सती के वियोग में तप में लीन थे और विवाह की कोई संभावना नहीं थी।

तारकासुर ने वरदान पाकर तीनों लोकों में अत्याचार शुरू कर दिए। देवताओं ने मिलकर माता पार्वती को शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप में लगाया। अंततः माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने विवाह स्वीकार किया और उनके मिलन से भगवान स्कंद का जन्म हुआ।

भगवान स्कंद ने बचपन में ही सैन्य कौशल और रणनीति में महारत हासिल कर ली थी। उन्हें देवताओं का सेनापति बनाया गया। उन्होंने तारकासुर के खिलाफ युद्ध छेड़ा और अपने पराक्रम से उसका वध कर दिया। इसी जीत की स्मृति में स्कंद षष्ठी का पर्व मनाया जाता है।

इस दिन क्या करें और क्या नहीं

व्रत के दिन संयम और नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ब्रह्मचर्य का पालन करें और तामसिक चीजों से दूर रहें। मांस, मदिरा और प्याज-लहसुन जैसे पदार्थों का त्याग करें।

वाणी, व्यवहार और विचार में शुद्धता बनाए रखें। क्रोध, झूठ और विवाद से बचें। पूजा-पाठ में मन लगाएं और भगवान स्कंद के गुणों का चिंतन करें।

तमिल संस्कृति में भगवान मुरुगन का विशेष स्थान

दक्षिण भारत खासकर तमिलनाडु में भगवान मुरुगन को "तमिल देवता" कहा जाता है। उन्हें तमिल संस्कृति का रक्षक और शक्ति का प्रतीक माना गया है। पालनी, तिरुचेंदूर, थिरुत्तणी और स्वामीमलाई जैसे प्रसिद्ध मंदिरों में स्कंद षष्ठी पर भव्य आयोजन होते हैं।

वहीं उत्तर भारत में इस दिन बालक रूप में भगवान कार्तिकेय की पूजा संतान प्राप्ति के उद्देश्य से की जाती है। महिलाएं इस दिन विशेष रूप से व्रत रखती हैं और भगवान स्कंद से संतान सुख की कामना करती हैं।

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