सावन का पावन महीना इन दिनों पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के रंग में रंगा हुआ है। शिव भक्त बड़ी संख्या में मंदिरों में उमड़ रहे हैं। कहीं कांवड़ यात्रा का उत्साह देखने को मिल रहा है तो कहीं जलाभिषेक की तैयारियां जोरों पर हैं। इस माह में भगवान शिव की पूजा-अर्चना को विशेष फलदायी माना जाता है। मगर, धर्म ग्रंथों में कुछ ऐसी बातों का उल्लेख भी किया गया है, जिनका ध्यान न रखने पर भक्तों को अशुभ परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
विशेष रूप से जब कोई शिव मंदिर से दर्शन करके लौट रहा होता है, तो कुछ नियमों का पालन करना जरूरी बताया गया है। ये नियम न सिर्फ आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण हैं बल्कि मानसिक और ऊर्जा संतुलन से भी जुड़े हैं।
घंटी बजाने की समय-सीमा को समझें
ज्यादातर लोग मंदिर में प्रवेश करते समय घंटी बजाते हैं। यह परंपरा बेहद प्राचीन है और इसके पीछे स्पष्ट मान्यता है कि घंटी की ध्वनि से वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। लेकिन बहुत से श्रद्धालु मंदिर से निकलते समय भी घंटी बजा देते हैं, जो कि शास्त्रों के अनुसार उचित नहीं है।
माना जाता है कि मंदिर में प्रवेश करते समय घंटी बजाना सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करता है, लेकिन बाहर निकलते समय अगर घंटी बजाई जाए तो वह सकारात्मकता भटक सकती है। इसलिए जब मंदिर से वापस लौटें तो घंटी न बजाएं। इससे मानसिक शांति और आस्था की ऊर्जा बनी रहती है।
पीछे मुड़कर न देखें लौटते समय
शिव मंदिर से बाहर निकलते वक्त बार-बार पीछे मुड़कर देखना भी अनुशंसित नहीं है। मान्यता है कि जब भक्त मंदिर से बाहर आता है, तब वह प्रभु की कृपा लेकर घर लौटता है। यदि वह बार-बार पीछे देखेगा तो उसका ध्यान शिव से हट सकता है और पुण्य का प्रभाव कम हो सकता है।
धार्मिक शास्त्रों में कहा गया है कि मंदिर छोड़ते वक्त ध्यान सीधे सामने रखें और मन में प्रभु का स्मरण करते हुए घर की ओर प्रस्थान करें। इससे मानसिक एकाग्रता बनी रहती है और आध्यात्मिक ऊर्जा क्षीण नहीं होती।
मंदिर से खाली हाथ न लौटें
कई लोग शिव मंदिर जाकर पूजा-अर्चना तो करते हैं लेकिन लौटते समय कुछ भी अपने साथ नहीं लाते। यह परंपरा शास्त्रों में अनुचित मानी गई है। माना जाता है कि भगवान को अर्पित वस्तुएं जैसे फूल, बिल्व पत्र, या प्रसाद में से कुछ अंश अपने साथ अवश्य लाना चाहिए।
यह परंपरा केवल आध्यात्मिक लाभ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक भी है। जब कोई भक्त प्रसाद लेकर अपने घर आता है, तो वह उस पवित्र ऊर्जा को अपने साथ लाता है, जिससे घर में भी सकारात्मक माहौल बना रहता है।
तुरंत भोजन करने से बचें
शिव मंदिर से लौटने के बाद तुरंत भोजन करना भी उचित नहीं माना गया है। मान्यता है कि मंदिर से लौटने के बाद कुछ समय तक भगवान का ध्यान करते हुए जल ग्रहण करें, फिर ही भोजन करें। ऐसा करने से मंदिर की पवित्रता और ध्यान की स्थिति बनी रहती है।
ध्यान रहे, मंदिर से आने के बाद हाथ-पैर धोकर, वस्त्र बदलकर, शांत मन से कुछ समय प्रभु के स्मरण में बिताना चाहिए। उसके बाद ही भोजन करने की परंपरा रही है।
लौटते समय मन को शांत रखें
कई बार देखा गया है कि लोग मंदिर से लौटते समय व्यर्थ की बातें करने लगते हैं या मोबाइल फोन पर लग जाते हैं। इससे मन की एकाग्रता भंग होती है और मंदिर में प्राप्त की गई सकारात्मक ऊर्जा का असर कम हो जाता है। इसीलिए मंदिर से लौटते समय मन शांत रखें और संभव हो तो कुछ समय तक प्रभु का नाम जप करते रहें।
यह एक साधना का समय होता है, जहां आप स्वयं से जुड़ने का प्रयास करते हैं। इस दौरान किसी प्रकार की बहस, हंसी-मजाक या मोबाइल में व्यस्त रहना लाभ के बजाय हानि कर सकता है।
साथ लाई गई चीजों का करें आदरपूर्वक उपयोग
अगर आप मंदिर से कोई प्रसाद, फूल या अन्य पूजन सामग्री लेकर आए हैं, तो उसका सही तरीके से उपयोग करें। प्रसाद को पूरे परिवार के साथ बांटें और पूजन सामग्री जैसे फूलों को घर के पूजा स्थान पर रखें। इससे मंदिर की पवित्रता घर तक पहुंचती है और वातावरण शांत बना रहता है।
अक्सर देखा गया है कि भक्त मंदिर से लौटते समय रास्ते में किसी से बहस या झगड़ा कर बैठते हैं। यह एक बड़ी भूल मानी जाती है। मंदिर से लौटते समय विनम्रता और धैर्य बनाए रखना चाहिए। जिस भक्ति और श्रद्धा के साथ आप मंदिर गए हैं, उसे अपने आचरण में भी उतारें।