फूलपुर विधानसभा उपचुनाव में सपा और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है, लेकिन जातीय समीकरण इस चुनाव को जटिल बना रहे हैं। वोटरों के मन को समझना चुनौतीपूर्ण हो गया है, जिससे परिणामों को लेकर असमंजस बना हुआ है।
UP Election 2024: उत्तर प्रदेश उपचुनाव में फूलपुर विधानसभा सीट पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। यहां के जातीय समीकरण इतने जटिल हैं कि यह कहना मुश्किल हो रहा है कि ऊँट किस करवट बैठेगा। इस सीट पर बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच हमेशा से कड़ी टक्कर रही है। मुद्दों के मुकाबले जाति का गुणा-भाग अधिक अहम हो गया है, और जो दल इस समीकरण को सही तरीके से साधेगा, उसकी जीत तय मानी जा रही है।
बीजेपी और सपा के बीच सीधी टक्कर

फूलपुर विधानसभा सीट पर उत्तर प्रदेश उपचुनाव के बीच बीजेपी और सपा के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल रही है। बीजेपी ने पूर्व विधायक दीपक पटेल को मैदान में उतारा है, जबकि सपा ने तीन बार के विधायक मुज्तबा सिद्दीकी को अपना उम्मीदवार बनाया है। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और चंद्रशेखर आजाद की आज़ाद समाज पार्टी भी चुनावी मैदान में हैं, लेकिन इन दोनों दलों के वोट कटवा होने की संभावना जताई जा रही है।
जातीय समीकरण ने बढ़ाई दुविधा

फूलपुर की सीट पर जातीय समीकरण काफी अहम भूमिका निभाता है। यहां के कुर्मी वोटर सबसे अधिक 70 हजार हैं, जिन पर बीजेपी की नजर है, खासकर दीपक पटेल को टिकट देकर पार्टी ने कुर्मी और सवर्ण वोटरों का समीकरण साधने की कोशिश की है। दूसरी ओर, सपा ने यादव और मुस्लिम वोटरों को साधने के लिए MY समीकरण पर ध्यान केंद्रित किया है, जहां यादव वोटर लगभग 65 हजार हैं।
पिछड़ी जातियों और दलितों का समीकरण निर्णायक
इसके अलावा, फूलपुर में दलित और अन्य पिछड़ी जातियों का वोट भी चुनाव परिणाम पर असर डाल सकता है। 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रवीण पटेल ने सपा के मुज्तबा सिद्दीकी को महज 2700 वोटों से हराया था, और अब प्रवीण पटेल सांसद बन चुके हैं, जिसके बाद दीपक पटेल को टिकट दिया गया है। लोकसभा चुनाव में भी सपा और बीजेपी के बीच अंतर सिर्फ 18 हजार वोटों का था।
सपा और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर

फूलपुर में कुल 4.07 लाख वोटर्स हैं, और जातीय समीकरण के हिसाब से ओबीसी वोट खासे अहम हैं, खासकर पटेल और यादव जातियों के वोटरों का झुकाव चुनाव परिणाम को तय कर सकता है। सपा की उम्मीद है कि वह पीडीए फॉर्मूले के जरिए दलित और पिछड़ी जातियों के वोटों में सेंध लगाएगी, लेकिन बसपा के मैदान में होने से यह समीकरण बदल सकता है। बीजेपी ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाकर चुनावी समीकरण को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रही है।












