अमेरिका के नए HIRE बिल ने भारतीय IT सेक्टर में हलचल मचा दी है। यह बिल विदेशी आउटसोर्सिंग पर 25% टैक्स, टैक्स कटौती पर प्रतिबंध और डोमेस्टिक वर्कफोर्स फंड के प्रावधान करता है। टाटा, इंफोसिस, विप्रो, एचसीएल और टेक महिंद्रा जैसी कंपनियों के लिए यह चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि वे अपने रेवेन्यू का 50-65% अमेरिकी ग्राहकों से अर्जित करती हैं।
U.S. 'HIRE' Bill: अमेरिका के रिपब्लिकन सीनेटर बर्नी मोरेनो द्वारा पेश HIRE बिल ने $250 बिलियन के भारतीय IT सेक्टर में चिंता पैदा कर दी है। यह कानून अमेरिकी कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाकर विदेशी आउटसोर्सिंग को रोकने और स्थानीय नौकरियों को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, इंफोसिस, विप्रो, एचसीएल टेक और टेक महिंद्रा जैसी प्रमुख भारतीय IT कंपनियां अमेरिका से अपने रेवेन्यू का 50-65% प्राप्त करती हैं, इसलिए उन्हें इस बिल से सीधा प्रभाव पड़ेगा।
HIRE बिल क्या है
HIRE बिल का पूरा नाम है "हॉल्टिंग इंटरनेशनल रीलोकेशन ऑफ एंप्लॉयमेंट एक्ट"। यह बिल अमेरिकी कंपनियों को विदेशों में नौकरियां आउटसोर्स करने से रोकने और उन्हें घरेलू कर्मचारियों को रोजगार देने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से बनाया गया है। इस बिल में तीन मुख्य प्रावधान शामिल हैं।
पहला, बिल के अनुसार आउटसोर्सिंग भुगतान पर 25 प्रतिशत टैक्स लगाया जाएगा। इसका मतलब यह है कि कोई भी अमेरिकी कंपनी या टैक्सपेयर यदि विदेशी कंपनी या व्यक्ति को भुगतान करता है और उसकी सेवाएं अमेरिका में उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाती हैं, तो उस भुगतान पर भारी कर लगेगा।
दूसरा, आउटसोर्सिंग खर्चों को टैक्सेबल इनकम से घटाने की छूट समाप्त कर दी जाएगी। इससे कंपनियों को विदेश में काम भेजने पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ उठाना पड़ेगा।
तीसरा, इस टैक्स से प्राप्त राशि को एक नए डोमेस्टिक वर्कफोर्स फंड में जमा किया जाएगा, जिसका उपयोग अमेरिकी कर्मचारियों को रोजगार देने और कौशल विकास में किया जाएगा।
भारतीय IT कंपनियों पर असर
भारत लंबे समय से IT आउटसोर्सिंग का केंद्र रहा है। प्रमुख कंपनियां जैसे TCS, इंफोसिस, विप्रो, HCL टेक और टेक महिंद्रा अपने कुल रेवेन्यू का 50 से 65 प्रतिशत हिस्सा उत्तरी अमेरिकी ग्राहकों से ही प्राप्त करती हैं। इन कंपनियों की सेवाओं में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, सिस्टम इंटीग्रेशन, क्लाउड मैनेजमेंट और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) शामिल हैं।
भारतीय IT कंपनियां कई फॉर्च्यून 500 कंपनियों जैसे सिटी ग्रुप, जेपी मॉर्गन चेज, बैंक ऑफ अमेरिका, फाइजर, माइक्रोसॉफ्ट और सेंट गोबेन को सेवाएं देती हैं। HIRE बिल लागू होने से इन कंपनियों को अपने अमेरिकी क्लाइंट्स के साथ सौदे में अतिरिक्त टैक्स का सामना करना पड़ सकता है।
लंबी अवधि में संभावित प्रभाव
विशेषज्ञों के अनुसार, अगर बिल लागू होता है, तो भारतीय IT कंपनियों के रेवेन्यू पर दबाव पड़ेगा। अमेरिकी कंपनियां अपने खर्चों को कम करने के लिए आउटसोर्सिंग कम कर सकती हैं। इससे नौकरियों की संख्या और परियोजनाओं की मात्रा पर असर पड़ सकता है।
इसके अलावा, भारतीय IT कंपनियों को अपने व्यापार मॉडल में बदलाव करना पड़ सकता है। उन्हें अमेरिकी ग्राहकों के लिए नए मूल्य निर्धारण और कर संरचना के अनुरूप अपनी सेवाओं को अनुकूलित करना होगा। कुछ कंपनियां स्थानीय कर्मचारियों के साथ पार्टनरशिप बढ़ा सकती हैं, जबकि कुछ अपने अमेरिकी संचालन को फिर से रणनीतिक रूप से डिजाइन कर सकती हैं।
बाजार और निवेश पर असर
भारतीय IT कंपनियों के शेयर बाजार में भी अस्थिरता देखने को मिल सकती है। निवेशक इस बिल की संभावित प्रभावशीलता को देखते हुए शेयर बेच सकते हैं या नए निवेश पर विचार कर सकते हैं। लंबे समय तक अगर HIRE बिल लागू रहता है, तो अमेरिकी कंपनियों पर अतिरिक्त कर भार बढ़ेगा, जिससे आउटसोर्सिंग में गिरावट आएगी।