उत्तराखंड हाई कोर्ट ने वैक्सीन वैज्ञानिक आकाश यादव को बड़ी राहत दी है, जिन्हें अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी करार देते हुए निचली अदालत ने पांच साल की जेल की सजा सुनाई थी। लेकिन अब हाई कोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि और सजा पर रोक लगा दी है।
Uttarakhand HC: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में वैक्सीन साइंटिस्ट डॉ. आकाश यादव की दोषसिद्धि और पांच साल की सजा पर रोक लगा दी है। यह मामला आत्महत्या के लिए उकसाने से जुड़ा है, जिसमें यादव को निचली अदालत ने दोषी करार दिया था। हाई कोर्ट का यह फैसला व्यापक जनहित, वैज्ञानिक अनुसंधान और वैक्सीन विकास की अहमियत को देखते हुए लिया गया है।
कौन हैं डॉ. आकाश यादव?
डॉ. आकाश यादव IIT खड़गपुर से पीएचडी कर चुके एक प्रतिष्ठित जैव प्रौद्योगिकी वैज्ञानिक हैं। वर्तमान में वे Indian Immunologicals Limited में सीनियर मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं और वैक्सीन अनुसंधान एवं विकास से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। उन्होंने हाल के वर्षों में वैक्सीन टेक्नोलॉजी में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं, जो विशेष रूप से पब्लिक हेल्थ और राष्ट्रीय चिकित्सा आपात स्थितियों के दौरान कारगर साबित हो सकते हैं।
क्या था मामला?
डॉ. यादव की पत्नी की मौत आत्महत्या से हुई थी, जिसके बाद उनके खिलाफ दहेज निषेध अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत केस दर्ज किया गया। रुद्रपुर की निचली अदालत ने उन्हें दहेज से संबंधित आरोपों से बरी कर दिया, लेकिन आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी पाते हुए 5 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ आकाश यादव ने उत्तराखंड हाई कोर्ट में अपील की।
हाई कोर्ट का रुख: वैज्ञानिक कार्य को मिली प्राथमिकता
डॉ. आकाश यादव ने अपनी अपील में यह तर्क दिया कि वे देश के लिए महत्वपूर्ण वैक्सीन विकास परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं और अगर उन्हें जेल भेजा गया, तो यह कार्य बाधित हो जाएगा। न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी की एकलपीठ ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि दोषसिद्धि और सजा पर रोक लगाना वृहद जनहित में आवश्यक है।
कोर्ट ने माना कि डॉ. यादव का कार्य सिर्फ उनके करियर का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय और वैश्विक स्वास्थ्य हितों से जुड़ा हुआ है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा: याचिकाकर्ता वैक्सीन अनुसंधान में संलग्न हैं, जो महामारी और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकटों से निपटने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। दोषसिद्धि को निलंबित करना समाज के व्यापक हित में होगा।
कानूनी आधार और मिसालें
कोर्ट ने अपने फैसले में भारतीय न्यायपालिका में पूर्व में हुए कई मामलों का हवाला दिया, जिसमें दोषसिद्धि के निलंबन की व्यवस्था दी गई थी। यह माना गया कि जब कोई व्यक्ति अपनी अपील में न्याय पाने की संभावना रखता है, और यदि उसकी गैर-मौजूदगी से कोई समाजहित में चल रहा कार्य बाधित होता है, तो दोषसिद्धि पर अंतरिम रोक लगाई जा सकती है।
यह मामला सिर्फ एक फौजदारी मुकदमे का नहीं, बल्कि इस बात का प्रतीक है कि कैसे वैज्ञानिक अनुसंधान और सामाजिक जिम्मेदारी का संतुलन बनाया जाना चाहिए। यदि कोई वैज्ञानिक समाज और मानवता के लिए अत्यंत आवश्यक अनुसंधान में लगा हो, तो ऐसी स्थिति में कानून का लचीलापन दिखाना व्यावहारिक और न्यायसंगत हो सकता है।